पच्चीस हज़ार का जूस - कहानी - अनुराग उपाध्याय

ग़ुस्सैल सूरज, गरम हवाएँ, आग बरसाती धरती और नेताओं के दिमाग़ की तरह बेहोश हुआ पंखा, आते जाते आदमियों के हाथ से फ़ाइल लेना और फिर उन्हें टेबल पर रख देना। अब आप सब  सोच रहे होंगे की यह क्या है। तो सुनिए जी यह दफ़्तर है, वो भी सरकारी वाला। जी हाँ।
और यहाँ के जो प्रमुख हैं, वो है श्री ईश्वर जी। ईश्वर जी खाने-पीने के बड़े शौक़ीन थे, या यूँ कह लीजिए कि खाना-पीना ईश्वर जी के शौक़ीन थे। इस चिलचिलाती धूप और लपट के थपेड़ों से बचने के लिए ईश्वर जी को एक युक्ति सूझी। उन्होंने तुरंत अपने दफ़्तर के चपरासी महोदय  विनय को आवाज़ दी, और विनय तुरंत ही उनके पास प्रकट हो गया और बोला "जी सर! बोलिए मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?" ईश्वर जी बोले "अच्छा तू मेरे लिए न बारिश करवा दे चल करवा।" विनय डरी हुई मुस्कराहट में बोला "क्या मज़ाक कर रहे हो... हैं हैं हैं।"
ईश्वर जी ताने मारते हुए बोले "अरे जब तुझे पता है तो तू कहे चतुराई दिखा रहा है। बोलिए सर में क्या कर सकता हूँ। हाँ नही तो। चल ये सब छोड़ मेरी बात ध्यान से सुन। दोनो कानो को खोलकर समझना। दफ़्तर के बाहर जो गन्ने का जूस वाला है उससे सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे लिए ही एक बड़ा वाला गन्ने का जूस लेकर आना वो भी चुपचाप। समझा? चल निकल।"

विनय ने अपना सिर हाँ में हिलाया और चल दिया जूस लाने। विनय जब जूस लेने गया था तो विनय था लेकिन जब लौट कर आया तो वो भानु बन चुका था, मानो की कोई भुना हुआ भुट्टा। हुआ कुछ ऐसा की विनय ने जूस के गिलास में थोड़ी बर्फ़ और डलवा दी ताकि वो ईश्वर जी के सामने अपनी तारीफ़ कर सके और दफ़्तर में अपनी इज़्ज़त और रुतबा जमा सके। लेकिन बर्फ़ तो थी ही नहीं, तो बर्फ़ वाले ने कहा "अगर आप थोड़ा इंतज़ार कर सके तो बर्फ़ का प्रबंध हो सकता है।

विनय ने कहा "हाँ बिल्कुल। ईश्वर जी प्यासे थोड़ा और रह लेंगे। तुम लाओ।
जब बर्फ़ आई तब जूस में डाली गई तब विनय ने वापसी की दफ़्तर के ओर। जब विनय दफ़्तर के ओर आ रहा था, तब वह एक जंग जीत कर आने वाली मुस्कुराहट के साथ था। उसने ईश्वर जी के कमरे में एक वीर की भांति प्रवेश किया और बोला "सर! मैं ले आया। ईश्वर जी ने ताना मारा "अरे भाइयों देखो! हमारे अपने विनय जी पूरे तीन घंटे चालीश मिनट और पच्चास सेकंड बाद एक दस रुपए का गन्ने के जूस का गिलास लेकर आए हैं। अरे भाइयों! आज ख़ुशी का मौक़ा है, नाचो गाओ ख़ुशियाँ मनाओ। विनय समझता है कि आज तो उसका दिन तारीफ़ है।
विनय बोला "अरे सर जी! इसकी क्या ज़रूरत है?"
ईश्वर जी कहते हैं "तुम्हारी तारीफ़ नहीं हो रही जो इतने ख़ुश हो रहे हो। लाओ जूस लाओ।"

ईश्वर जी जूस को ऐसे पी रहे थे जैसे मानो यही उनकी अंतिम इच्छा हो।
विनय ये सब देख कर मन ही मन हँस रहा था।

आधे घंटे बाद जब उनके सहकर्मी उन्हें भोजन के लिए बुलाते हैं तो वो पाते हैं की ईश्वर जी कोई हरकत नहीं कर रहे थे। वे घबराकर पूरे ऑफ़िस को ईश्वर जी के कमरे में उपस्थित करा दिए।
सहकर्मी ने हालत नाज़ुक है यह जानकर तुरंत उनके घर वालों को सूचित किया। घर वाले भी बुलेट ट्रेन की रफ़्तार से दफ़्तर आ दमके क्योंकि... हालत नाज़ुक थी।
हालत नाज़ुक है यह जानकर पूरा परिवार एक साथ दफ़्तर में आ धमका। परिवार वालों ने तुरंत ही उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाने चल दिए।
सरकारी अस्पताल बहुत दूर था, यह सोचकर उन्होंने प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करने का तय किया। जैसे ही पहले अस्पताल में पहुँचे उस अस्पताल में ताला लगा पाया। दूसरे में पहुँचे तो पता चला की डॉक्टर ही नहीं है। तीसरे अस्पताल का नाम था जीव दया। परिवार वालों को लगा की अब यही करेगा दया।

अस्पताल का मंज़र अटपटा था, पाँचों डॉक्टर अस्पताल की सफ़ाई में व्यस्त थे। मरीज़ को आते देख वो झट से डॉक्टर की पोशाक में आ गए और तुरंत इलाज करना चालू कर दिया, परिवार वाले विश्वास में आ गए कि सच में जीव दया है। उन्होंने तरह-तरह की मशीन, तरह - तरह के टेस्ट लिखकर दे दिए, आधा दर्जन से ज्यादा दवाई लिख दी। डॉक्टर कमरे का एसी बंद करता तो उनकी पत्नी चालू कर देती तो डॉक्टर बोला "लाइट नहीं है मैडम बंद रहने दो। तो उनका छोटा बेटा बोला "माँ पैसे पूरे लगेंगे, बंद मत करना।" मां बोली "हाँ ठीक है।"

डॉक्टर उन्हें मशीन पर ईश्वर जी के दिल की धड़कन और साँस दिखाते हुए बोला "यह देखिए इनकी धड़कन और साँस ऐसे चल रही है।" तो उनकी पत्नी बोली "इनकी तो ऐसे ही चलती है।" डॉक्टर मन में बोला "इन्होंने कब देखा?"

थोड़ी देर बाद ईश्वर जी को होश आया। उन्होंने पूरे परिवार और ख़ुद को अस्पताल में देख कर पूछा "कौन बीमार हुआ?"
सब एक स्वर में बोले "आप।"
वो बोले "कब?"
सब बोले "पता नहीं कब?"
उन्होंने टेस्ट की फ़ाइल, दवाई का ढेर, मशीनों की क़तार देखी और बोले "बिल कहाँ है।"
थोड़ी देर में बिल आ गया।
बिल देखकर वो बोले "मैने तो सिर्फ़ गन्ने का जूस पिया था, वो भी पच्चीस हज़ार का।"
उन्होंने पूरे परिवार के साथ अस्पताल से घर की और एक लंबी दौड़ एक साँस में लगा दी।

अगली सुबह ईश्वर जी घर के बाहर बैठे थे, तभी गन्ने का जूस वाला आ गया। उनका छोटा बेटा बालकनी में पहुँच गया। ईश्वर जी जैसे ही उठते हैं उनका बेटा बोलता है "नहीं...।"
तभी उनके पड़ोसी जी पूछते हैं "क्या हुआ ईश्वर जी।"
ईश्वर जी बोलते हैं "होना क्या था? पिया था जूस हमने गन्ने का बिल चुकाया पूरे पच्चीस हज़ार का।"

अनुराग उपाध्याय - मुरैना (मध्यप्रदेश)

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