चरित्रहीन - कविता - अनुष्का द्विवेदी

पंद्रह साल की लड़की
हाथो पर मेहँदी से प्रेमी का नाम सजा रही है
और शर्माकर हाथों को छुपा रही है।
चुपके से आईना के सामने 
छोटी टिकुली लगा रही है
माँ की ओढ़नी लपेटे 
हवा की झोंक को पुकार रही है,
बालो को सँवार कर गजरा लगा रही है,
कोई देख ले, उससे पहले जल्दी-जल्दी मिटा रही है।
तभी किसी ने उसे चरित्रहीन कहा
किसी ने उसे धब्बा कहा
कोई हँसता है, कोई तमाशा बनाता।
वो बदनाम लड़की
अब मेहँदी नहीं लगाती
उसे कालिख पोता जाता है।
वो चरित्रहीन लड़की
अब टिकुली नही, कलंक का टीका लगाए है।
उस कुल्टा को हर कोई
घिनौनी निगाहो से घूर रहा है
वे उससे उसकी ओढ़नी छीन
कफ़न ओढ़ा दिए हैं।
पर सिनेमा वाली लड़की
आज प्रेमी से मिल रही है
कफ़न ओढ़ाने वाले दर्शक बनकर नाच रहे हैं 
गा रहे हैं
और पंद्रह साल की लड़की की तस्वीर मुस्कुरा रही है।

अनुष्का द्विवेदी - आरा (बिहार)

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