चूर है शीशा-ए-दिल एक नज़र और सही - ग़ज़ल - ज्योत्स्ना मिश्रा 'सना'

अरकान : फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़इलुन
तक़ती : 2122  1122  1122  112

चूर है शीशा-ए-दिल एक नज़र और सही,
इक नया ख़्वाब मिरे दीदा-ए-तर और सही।

तेरे ख़ातिर किया ज़माने से किनारा मगर,
जहाँ में तिरे इनायत-ए-नज़र और सही।

तेरी तरक़्क़ी के मीनार में बुनियाद सा,
दफ़्न इक वजूद-ए-बशर और सही।

किताब-ए- ईश्क़ में रखे तिरे उस गुलाब से,
महकती मिरी इक शब-ओ-सहर और सही।

क्यों न दो-चार क़दम साथ भी चल कर देखें,
है मिरी राह जुदा तेरा सफ़र और सही।

रिश्ता-ए-गुल की उम्र कम होती है 'सना',
इस तर्क-ए-मरासिम का असर और सही।

ज्योत्स्ना मिश्रा 'सना' - राउरकेला (ओड़िशा)

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