शिक्षा के दौरान - कविता - डॉ॰ राजेश्वरी एम॰ वी॰

आँखों का तारा, नयनों का सितारा, 
सरिता-समुंदर पार, मेरी सन्तान, 
विहग, विदेश शिक्षा के दौरान।

दीक्षा ली अभिभावकों से,
उपदेश गुरूजनों से,
ली शुभेच्छा बंधु-मित्रों से,
कृपा की पोटली भगवान से, 
फिर, निकल पड़ी मेरी सन्तान,
विहग, विदेश शिक्षा के दौरान।

आसमान से तारे तोड़ने 
अरमानों के महल सजाने,
जनहित का जाप करते,
जगहित का जुनून भरते,
तब, निकल पड़ी मेरी सन्तान,
विहग, विदेश शिक्षा के दौरान।

जान से प्यारा, जिगर का टुकड़ा, 
बन के सहारा, ज्ञान का तगड़ा,
मशाल थामें, ज्योत जलाने,
दृढ़संकल्प लिए, मंज़िल मिलने, 
हाँ, निकल पड़ी मेरी सन्तान,
विहार, विदेश शिक्षा के दौरान।

अडिग डग, अमर अंदाज़,
व्रत धारी, पथ बाज़ी,
लक्ष्य साधने, रहस्य भेदने,
उड़ान भरे, भावी रचने, 
निष्ठुर, निकल पड़ी मेरी सन्तान,
विहग, विदेश शिक्षा के दौरान।

मूक-कूक भरती माता,
ताक-झाँक करता पिता,
नीरा घोंसला, भिनभिनाता,
विरह वियोग तमतमाता,
छोड़, निकल पड़ी मेरी सन्तान,
विहग, विदेश शिक्षा के दौरान।

डॉ॰ राजेश्वरी एम॰ वी॰ - बेंगलुरू (कर्नाटक)

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