जीवन - कविता - नागेन्द्र नाथ गुप्ता

जीवन तो चलता रहता है,
जल जैसे कल कल बहता है।
आते जाते सुख-दुःख हरदम,
संसार झमेला लगता है।
भीड़ भरी बस्ती औ गलियाँ,
ये जग इक मेला लगता है।
उसकी बोली कोई न समझें,
पंछी जाने क्या कहता है।
आए विपदा सूखा चाहे,
हर कोई जीता मरता है।
रोज़ बदलती सूरत जग की,
दुनिया में सब कुछ चलता है।
होते हैं अपराध अनेकों,
इंसान सभी कुछ सहता है।
हँसते-गाते औ मुस्काते,
जीवन सरिता सा बहता है।

नागेन्द्र नाथ गुप्ता - मुंबई (महाराष्ट्र)

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