प्यासी है प्यास - नवगीत - अविनाश ब्यौहार

है अथाह
जलराशि
प्यासी है प्यास।

ज्वार भाटा
सौंदर्य है
सागर का।
दुःख सुनता
कौन छूछी
गागर का।।

नखत हैं
फिर भी
सूना सा आकाश।

चक्षु में
आँसू-
सीपी में मोती।
दूर कहीं
आज-
पुरवाई रोती।।

सपनों पर
दुर्दिन-
फेंकता है पाश।

अविनाश ब्यौहार - जबलपुर (मध्य प्रदेश)

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