श्राद्ध व तर्पण - कविता - सीमा वर्णिका

माह भादप्रद पितृपक्ष काल,
श्राद्ध तर्पण करते हर साल।
स्वपूर्वजों का ऋण चुकाते, 
सद्कर्मों से काटे पाप जाल।।

श्रद्धा भाव से जन करते तर्पण,
कौओं को भोजन करते अर्पण।
कहते पितृ काग रूप में आते, 
देते शुभाशीष देखकर समर्पण।।

वंशजों के जीवन में शुभफल,
आशीषों से सुधरे बिगड़ा कल।
इस काल में किया दान पुण्य,
पितरों की आत्मा को देता बल।।

भारत भूमि रही संस्कारों की,
पूजा होती यहाँ चाँद तारों की।
माता पिता का स्थान सर्वोच्च,
यहाँ होती सेवा मृतात्माओं की।।

सीमा वर्णिका - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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