उठो देश के वीर सपूतों - कविता - सूर्य मणि दूबे 'सूर्य'

उठो देश के वीर सपूतों,
एक नया आग़ाज़ करो।
आज़ादी का अमृत मन्थन,
नस नस में नव प्राण भरो।

याद करो इतिहास तुम्हारा,
राणा और शिवाजी का।
गुरु गोविंद तेग बहादुर,
दुर्गावती और झाँसी रानी का।

नहीं डरे थे नहीं झुके थे,
सर काटे थे बलिदान हुए।
आख़िरी साँस तक संघर्षों से,
वीर पृथ्वीराज चौहान हुए।

चेतक सवार वो राणा प्रताप,
अरि दल विध्वंस चेतक के संग।
नवगठन किए खा तृण कन्दमूल,
शत्रु प्राण पर भारी था शूल।

डरकर मरना नहीं हो लड़कर बलिदान,
अरि असंख्य तो हो एक संग।
एक साथ हो कर प्रहार,
निश्चित होगा शत्रु संघार।

चन्द्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह,
होकर संगठित बनो नेता सुभाष।
बटुकेश्वर और राजगुरु बन,
करो ऐसी आवाज़ सुन ले आकाश।

मंगल पांडे अब्दुल हमीद,
बन कर विज्ञान बनो अब्दुल कलाम।
लेकर 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का पाठ,
विश्व में हो फिर राम राज्य।

उठो देश के वीर सपूतों,
एक नया आग़ाज़ करो।
आज़ादी का अमृत मंथन,
नस नस में नव प्राण भरो।

सूर्य मणि दूबे 'सूर्य' - गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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