पंद्रह अगस्त - कविता - ओम प्रकाश श्रीवास्तव 'ओम'

कण कण मिट्टी का डोल उठा,
देखो पंद्रह अगस्त आया है।
कितने संघर्षों को करके पार,
हमने यह अनुपम दिन पाया है।।

सकल विश्व में अपने भारत का,
डंका ज्ञान ध्यान में बजता था।
हुई शून्य की खोज यहीं पर अरु,
खोजा पहिया कैसे चलता था।
कैसे उड़ता है नभ में विमान,
यह विमान शास्त्र में बताया है।
कितने संघर्षों को करके पार,
हमने यह अनुपम दिन पाया है।।

देख देख कर भारत का वैभव,
सकल विश्व मन में ललचाता था,
कैसे छीने भव्य संपदा वह,
सबको यही विचार सताता था।
पहले मुग़लों फिर अंग्रेजों ने,
भारत में उत्पात मचाया है।
कितने संघर्षों को करके पार,
हमने यह अनुपम दिन पाया है।।

आज़ादी ख़ातिर फाँसी झूले,
कितनों को ही हमने खोया था। 
संघर्ष देख भारत वीरो का,
ऊपर बैठा नभ भी रोया था।
आकर पंद्रह अगस्त ने सब को,
फिर से वह पल स्मरण कराया है।
कितने संघर्षों को करके पार,
हमने यह अनुपम दिन पाया है।।

ओम प्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' - कानपुर नगर (उत्तर प्रदेश)

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