अरकान: फ़ऊलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन मुफ़ाईलुन
तक़ती: 122 1222 122 1222
हर इक शख़्स को क़िस्मत नवाबी नहीं मिलती,
यहाँ ज़िंदगी सबको गुलाबी नहीं मिलती।
वो चाहे कोई भी हो जो मेहनत नहीं करता,
उसे ज़िंदगी में कामयाबी नहीं मिलती।
मुझे शौक़ है चेहरे हसीं पढ़ने का लेकिन,
यहाँ कोई भी सूरत किताबी नहीं मिलती।
पिऊँ तो पिऊँ किसकी नशीली नज़र से मैं,
कोई भी नज़र मुझको शराबी नहीं मिलती।
मैं आशिक़ दिवाना हूँ जुआरी शराबी हूँ,
मगर मुझमें कोई और ख़राबी नहीं मिलती।
उठाते थे सब आवाज़ इंसाफ़ की पहले,
सदा पर कोई अब इंक़लाबी नहीं मिलती।
ख़ुदा तूने फ़ुर्सत में बनाया है क्या इसको,
जहाँ में तेरे कोई ख़राबी नहीं मिलती।
धर्वेन्द्र सिंह - भिवानी (हरियाणा)