यादें बचपन की - कविता - हरदीप बौद्ध

जब हम बच्चे थे,
वो पल बहुत अच्छे थे।

रो-रोकर स्कूल को जाते,
हँसते हुए वापस आते।
होता था अवकाश जिस दिन,
खेल-कूद में सारा दिन बिताते।

खो-खो औऱ लट्टू का खेल था,
आपस में बड़ा ही मेल था।
झगड़ते भी थे दोस्तों से, मगर
दोस्तों के बिना सब फेल था।

पक्की थी हमारी दोस्ती,
और सच्ची हमारी यारी थी।
करते थे जो खेल में हम,
कंधे वाली सवारी थी।

भोर होते ही चौपाल पर,
समय से सब आ जाते थे।
खेलते थे हम अंताक्षरी,
मिलकर हम गाने गाते थे।

याद आती है बचपन की कहानी,
करते थे हम हरपल शैतानी।
वो ख़ुशी वो मस्ती, याद करके
भर आता है आँखों में पानी।

दादी रोज़ कहानी सुनाती,
लोरी गाकर माँ हमें सुलाती।
बचपन की वो प्यारी बातें,
कभी भुलाई नहीं जाती।

हरदीप बौद्ध - बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)

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