स्वतंत्रता - कविता - सरिता श्रीवास्तव 'श्री'

पन्द्रह अगस्त सन् सैंतालीस,
भारत में आज़ादी आई।
स्वतंत्र भारत की पताका,
फर फर फर फहराती आई।

तिरंगा भारत की जान है,
भारतीयों का सम्मान है।
एकत्रित हैं ध्वज के नीचे,
तिरंगा सबका अभिमान है।

देशी हवा महकती ख़ुशबू,
सब कुछ है हिन्दुस्तान का।
स्वतंत्र हवा में साँसें पाई,
कृतज्ञ शहीद बलिदान का।

ग़ुलामी की ज़ंजीरें कैसी,
ये हम सबने भुगता है।
दास बने थे अंग्रेजों के,
दर्द ग़ुलामी का भुगता है।

आज हमारे हिन्द की महिमा,
जग में बहुत निराली है।
राह पकड़ी हिन्द विकास की,
'श्री' जग में जगह बना ली है।

सरिता श्रीवास्तव 'श्री' - धौलपुर (राजस्थान)

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