पंद्रह अगस्त - कविता - अंकुर सिंह

पंद्रह अगस्त सैंतालीस को,
कैलेंडर दिवस था शुक्रवार।
मिली इस दिन हमें आज़ादी,
खुला अपने सपनों का द्वार।।

आज़ादी के साथ देश ने,
बँटवारे का दर्द भी झेला। 
आज़ादी ख़ातिर गोरों ने,
ख़ून की होली हमसे खेला।।

आज़ादी की चाहत दिल में,
सत्तावन में दहक उठी थी।
कोलकत्ता के बैरकपुर में,
मंगल की गोली बोली थी।।

उन्नीस सौ सैंतालीस के पहले,
अपनी भी बड़ी लाचारी थी।
ब्रिटिश सरकार ज़ुल्म ढहाती,
फिरंगी सरकार दुष्टाचारी थी।।

सत्ताइस फ़रवरी इकतीस को,
आज़ाद ने ख़ुद पर पिस्टल ताना।
पच्चीस साल का नव-युवक,
आज़ादी का था दीवाना।।

उन्नीस सौ उन्तीस में 
पूर्ण स्वराज्य की माँग किया।
अगस्त बयालीस में गांधी ने,
'भारत-छोड़ो' का एलान किया।।

कई शहादत के बाद हमने,
आज तिरंगा लहराया।
नमन वीरों की क़ुर्बानी पर,
जिससे देश आज़ादी पाया।।

अंकुर सिंह - चंदवक, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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