लड़की हूँ मैं - कविता - दिव्यांशी निषाद

उलझे हुए मिज़ाज की सुलझी हुई लड़की हूँ मैं।
जवाब-तलब करू तो दुनिया के लिए भड़की हूँ मैं।
अपने लक्ष्य को पाने की ज़िद्दी हूँ मैं।
ज़िंदगी में अपनी गुमशुद सी लड़की ‌हूँ मैं।
सहन न कर ‌लोगो की बात,‌
छोड़‌ कर लिहाज़ दूँ लोगो को जवाब तो कम संस्कारी हूँ मैं।

क़िस्मत, इश्क़ आौर हालात के आगे हारी हूँ मैं।
अपने मुताबिक़ ज़िंदगी जीने वाली आत्मनिर्भर लड़की हूँ मैं।
पुरे करने वाली आरज़ू अपने माता-पिता की अभिमान हूँ मैं।
न लड़ सकू तो कमज़ोर आौर असहाय हूँ मैं।
ज़माने से लड़कर करूँ अपने ख़्वाहिश पूरे तो ग़लत लड़की हूँ मैं।
सहु अत्याचार तो बेबस हूँ मैं। उठाऊ अवाज़ तो बुलंद हुँ मैं।

घर मे रहु तो शांत और ठीक हूँ मैं। करूँ अपने मन की तो ख़राब लड़की हूँ मैं।
न दूँ लोगो‌ को जवाब तो अशिक्षित हूँ मैं।
दू सबको ज्ञान तो तेज़ हूँ मैं।
न करूँ पुरूष से बात तो कमज़ोर अौर डरती हूँ मैं।
करूँ बात रखकर समानता का अधिकार तो चरित्रहीन लड़की हूँ मैं।
ख़ामोश ‌रहूँ तो लहजा हूँ मैं। बोलूँ तो बेशरम हूँ मैं।

तो बता दूँ अबला नहीं सबला हूँ मैं।
मुश्किलों से लड़ने वाली ‌मज़बूत चट्टान हूँ मैं।
चरित्रहीन नहीं,‌ समझो तो सिर उठा कर जीने वाली तमन्नाओं से भरी अकाश हूँ मैं।
पढ़ सको तो सरल‌ अौर सहज खुली किताब हूँ मैं।
नहीं तो रहस्यों से भरी गहरा समन्दर हूँ मैं।
अशिक्षित नहीं पढ़ो तो ज्ञान हूँ मैं, ममता से भरी गुमान हूँ मैं।

बे-ख़ुदी नहीं, ख़ुदा से बनी अनगिनत गुणों से परिपूर्ण कहानी हूँ मैं।
ख़ुद की स्वाभिमान हूँ मैं।
अपनी ज़िंदगी सफल बनाने वाली दृढ़ इच्छा शक्ति हूँ मैं।
परखो तो इब्रत हूँ मैं, देखो तो जज़्बातों से भरी लड़की हूँ मैं।

ग़लत के लिए क़हर‌, बुरे के लिए ज़हर हूँ मैं।
बुराइयों को जलाने वाली आग हूँ मैं।
कलंकित ‌नही बे-दाग़ हूँ मैं।
नफ़रत से दुर ख़ुर्शीद की नूर हूँ मैं।
तेरे इश्क़ की फ़ितूर मे चुर लड़की हूँ मैं।

दिव्यांशी निषाद - इलाहाबाद ‌(उत्तर प्रदेश)

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