मेंढ़क और गिलहरी नाचें,
गौरैया गीत सुनाए।
चहुँदिश हरियाली चमक रही,
कोयल गाना गाए।।
कौआ झूम कर नाच रहा,
मछली जल में करत किलोर।
झूमा बादल नाची मोर, छाई काली घटा घनघोर।।
सूख रही थी नदी सारी,
वृक्षारोपण भी रूका हुआ।
तालाबों में नहीं था पानी,
सूखा चहुँदिश पड़ा हुआ।।
पेड़ से झाँके सोन चिरैया
प्यासे घूम रहे थे ढोर।
झूमा बादल नाची मोर, छाई काली घटा घनघोर।।
बादल रिमझिम करै फुहार,
सुन ली उसने मेरी गुहार।
झूम झूम कर गरज रहा,
रिमझिम रिमझिम बरस रहा।।
अम्बर बरसे धरती भीजे,
खेत खलिहान की हो गई भोर।
झूमा बादल नाची मोर, छाई काली घटा घनघोर।।
कहें 'मंजरी' सुन लो भाई,
जा बारिश ने ख़ूब बनाई।
नन्हे बच्चे झूम रहे,
उछल उछल कर कूद रहे।।
जम कर बरसे काले बदरा
मिल ना पाए कोई छोर।
झूमा बादल नाची मोर, छाई काली घटा घनघोर।।
भगवत पटेल 'मुल्क मंजरी' - जालौन (उत्तर प्रदेश)