कृष्ण कन्हैया - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

कालिन्दी तटनी मुदित, खोई राधा प्रीत।
मनमोहन माधव मधुर, मीत कृष्ण नवनीत।।

देख रही मुरली मधुर, सुनी मधुरिमा गीत।
बसी हृदय राधारमण, राधा गाती प्रीत।।

मधु माधव मन माधवी, मुकुलित प्रीत रसाल।
राधा रमणी रागिनी, बिंदी सजी कपाल।।

नंदलाल यशुमति लला, देख मनोहर श्याम।
सजी धजी मन मोहिनी, मन मुकुन्द अभिराम।।

देख रही निर्मल सलिल, बहती यमुना धार।
मोर मुकुट श्रीकृष्ण मुख, गिरिधर प्रीत बहार।।

गोवर्धन नटवर ललित, वंशीधर गोविन्द। 
खिले प्रीत राधा मनसि, कृष्ण कुसुम अरविन्द।।

पीताम्बर घनश्याम तनु,राधा चित्त विलास।
खोई नटवर रास मन, मधु निकुंज अभिलास।।

राधा वल्लभ लखि मुदित, राधा प्रिय अनुराग।
विहसित मुख गोपीरमण, प्रीत मिलन हिय आग।।

लखि राधा विरही हृदय, आकुल मन गोपाल। 
आलिंगन राधा प्रियम, चुम्बित भाल विशाल।।

राधा सोहाने मुदित, बसी कृष्ण हिय वाम।
मगन मुरलिया माधुरी, खोई कृष्ण ललाम।।

भजो कन्हैया लाल को, गोवर्धन गोविन्द।
कृष्ण सुदामा मीत भज, राधा मुख अरविन्द।।

योगेश्वर श्रीकृष्ण मन, दर्शन सुख अभिलास।
राधा रानी चारुतम, मधुरित प्रीत सुहास।।

डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' - नई दिल्ली

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