अग्निपथ - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव

अग्निपथ - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव | Motivational Kavita - Agnipath | अग्निपथ प्रेरक कविता, Hindi Motivational Poem Agnipath
प्रस्तावना
"अग्निपथ" एक महाकाव्यात्मक काव्य संग्रह है जो जीवन के संघर्ष और विजय की गहन यात्रा को अभिव्यक्त करता है। यह रचना एक आदर्श नायक की कथा को प्रस्तुत करती है, जो न केवल बाहरी शत्रुओं से लड़ता है, बल्कि अपने भीतर के अज्ञान और अहंकार से भी जूझता है।

इस काव्य संग्रह की कथा पाँच प्रमुख सर्गों में बँटी है, जो नायक की यात्रा के विभिन्न चरणों का वर्णन करते हैं:

1. प्रथम सर्ग: "अग्निपथ" की प्रारंभिक पृष्ठभूमि में नायक की प्रेरणा और संघर्ष की भूमि का चित्रण किया गया है, जहाँ उसे अपने पथ की खोज होती है।

2. द्वितीय सर्ग: यहाँ नायक सामाजिक चुनौतियों, अन्याय और आंतरिक डर का सामना करता है, जिससे उसकी विश्वास और सिद्धांत परखते हैं।

3. तृतीय सर्ग: इस चरण में नायक अपने भीतर छिपी शक्ति और ज्ञान को पहचानता है, जिससे उसकी आत्म-समझ और जीवन के उद्देश्य का खुलासा होता है।

4. चतुर्थ सर्ग: यह सर्ग नायक के सबसे बड़े संघर्ष का वर्णन करता है, जो उसके जीवन की यात्रा का सार है, जिसमें उसकी प्रतिष्ठा और शक्ति का परीक्षण होता है।

5. पंचम सर्ग: अंततः, नायक केवल बाहरी शत्रुओं पर विजय प्राप्त नहीं करता, बल्कि अपने अज्ञान और अहंकार पर भी विजय प्राप्त करता है। उसकी विरासत और आदर्श आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनते हैं।

"अग्निपथ" एक अद्वितीय काव्य संग्रह है, जो आदर्श नायक के माध्यम से मानवता की गहराईयों, संघर्षों, और अंतर्दृष्टियों को उजागर करता है। यह रचना आत्म-ज्ञान, साहस, और सत्य की खोज की यात्रा को एक सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान करती है, जो हर पाठक को प्रेरित करने का प्रयास करती है।

प्रथम सर्ग: जन्म और प्रारंभिक जीवन


प्रकृति की गोद में जन्मा वह वीर,
धरती का पुत्र, नभ का अधीर।
साधारण घर, साधारण परिवेश,
भीतर था संदेश, अद्भुत अवशेष।

जब वह जन्मा, नभ में गरज थी,
धरती ने हँसकर गोद में उठाई थी।
आँखों में तेज़ था, सूर्य का पाथ,
मन में विश्वास, अचल थी उसकी राह।

निर्मल था हृदय, जैसे जलधारा,
जो बहता जाए, न थमे किनारा।
वायु सा मन, स्वतंत्र और महान,
जो बहता हर दिशा, न रुके, न थाम।

अग्नि सी ज्वलंत थी उसकी आत्मा,
अंधकार को जला दे, रोशन हो राह।
संकल्प की ज्वाला, जो बुझती नहीं,
हर चुनौती से तपकर, सोना बने वहीं।

धरती सी दृढ़ता, हर प्रहार सहे,
डिगे न कभी, न रुकती कहीं।
आत्मा में धरा का विस्तार था,
प्रहार सहकर भी, देती थी प्यार।

सरल था बालक, पर गहन विचार,
भीतर ज्वालामुखी, ऊपर शांत व्यवहार।
हर क़दम पर संकल्प था साथ,
जो भीड़ से अलग, बनाता उसे महान।

उसमें था अद्वितीय गुण,
जो धरा से नभ तक पहुँचाए हर युग।
न झुके, न रुके, वह बालक महान,
जो बनेगा नायक, उसका ही है मान।

धरती की माटी में पला-बढ़ा वीर,
विश्व को बदलने का साहस अधीर।
प्रकृति ने सिखाया संघर्ष का पाठ,
जीवन का शिक्षक, वही सबसे बड़ा साथ।

प्रारंभ था यह, अग्निपथ की ओर,
जिस पर चलेगा, बनेगा वह शौर्य का स्रोत।
पहला क़दम, अस्मिता की पहचान,
आगे पथ कठिन, पर न होगा अभिमान।

क्योंकि वह जानता, अग्निपथ है वही मार्ग,
जो साधारण को बनाए, महानायक उसका।
धरती से नभ तक, जो ले जाएगा,
वह बालक न रुकेगा, न थकेगा।
***

द्वितीय सर्ग: संघर्षों का दौर


अधीर मन, अदम्य हृदय,
नायक का संघर्ष अब शुरू हुआ,
जीवन को देखा उसने, तपते कड़वे सत्य की तरह।
हर कदम पर समाज की कठोरता,
जहाँ स्वप्नों को कुचलने की थी आदत।

वह जल था, अब भाप बनने लगा,
वह अग्नि थी, और भड़कने लगी।
अन्याय के घेरे में घिरा वह,
जहाँ भीतर और बाहर अँधेरा छाया।

समाज की ऊँचाइयों पर, जहाँ न्याय न था,
जहाँ सत्य को रौंदा, झूठ का व्यापार था।
वह खड़ा था विश्वासों की दीवार के संग,
हर प्रहार पर नींव में दरार बढ़ने लगी।

आधी रात का सन्नाटा, भीतर की आवाज़,
कह रही थी, झुक जा, छोड़ दे सिद्धांत।
पर नायक, जो जीवन को देखे ज्वालामुखी सा,
कभी शांत, कभी धधकता रहा।

अग्नि की परीक्षा की घड़ी थी,
सिद्धांतों का हर शब्द कसौटी पर।
मन में था डर, एक अनकहा भय,
क्या वह पार पाएगा इस अंधकार को?

पर वह डटा रहा, अपार धैर्य के साथ,
हर अन्याय को चुनौती देते हुए।
सत्य की राह पर काँटे थे बिछे,
हर मोड़ पर दंश, कठिनाई के निशान।

नायक न हारा, न झुका,
अग्निपथ को चुना, डर को किया वश में।
बोला, "मैं न रुकूँगा, न झुकूँगा,
मैं चलूँगा उस मार्ग पर, जहाँ सत्य बुलाता है।"

समाज की कठोरता पत्थर की दीवार,
पर उसने सिद्धांतों के हथौड़े से,
हर बाधा और अंधकार को तोड़ा।
हर आघात से आत्मा मज़बूत होती गई।

सीखा उसने, संघर्ष ही जीवन का सत्य है,
यही पहचान बनाएगा, यही सिखाएगा।
जो डर से न हारा, विश्वासों से न डिगा,
वही तो है अग्निपथ का सच्चा पथिक।

समाज की कठोरता ने न झुकाया,
अन्याय की परछाई ने न डराया।
वह रहा सिद्धांतों का प्रहरी,
हर संघर्ष, हर कठिनाई को पार किया।

यह थी उसकी यात्रा, संघर्षों का दौर,
भीतर से मज़बूत, अदम्य बना गया।
अब वह तैयार था अंतिम संघर्ष के लिए,
जहाँ उसका सत्य, उसकी अग्नि,
उसके जीवन का अंतिम सार बनेगी।
***

तृतीय सर्ग: आत्म-ज्ञान


मन के गहरे सागर में जब,
चिरंतन प्रश्न जाग उठते हैं,
जीवन की राह में चलते हुए,
सपनों के दीप जल उठते हैं।

धूमिल थी जो दृष्टि कभी,
अब उजियारा पथ दिखलाई दे,
जो सन्नाटे में खोया था,
वह नाद हृदय में गूँज उठे।

व्यर्थ लगे ये बाहरी छल,
जब भीतर का संगीत बजे,
जो सत्य छिपा था धूल तले,
वह अब नयनों में समा उठे।

आत्मा की शक्ति असीमित है,
यह ज्ञात हुआ उस क्षण में जब,
कर्म के बंधन टूट पड़े,
स्वतंत्रता की शपथ उठे।

पथिक था जो भटका हुआ,
अब पथ का पावक बन जाए,
जो रुकता था हर बाधा पर,
अब अडिग पर्वत हो जाए।

जीवन की गूढ़ पहेली का,
हल उसने अपने भीतर पाया,
जो प्रश्न उसे सताते थे,
उनका उत्तर आज मिल पाया।

चिंताओं के जाल से बाहर,
वह अब निर्मल बन उठे,
जो खो गया था भीड़ में,
अब अपनी पहचान बन उठे।

आकाश की ऊँचाई छूने को,
वह अपने पंख फैला दे,
जो केवल स्वप्न में था कभी,
वह अब सत्य रूप में आ जाए।

ज्वाला बन जो जलता था,
वह अब प्रकाश बन जाए,
अग्निपथ पर चलते हुए,
वह स्वयं को पथदर्शी पाए।

यह सत्य है, यह ज्ञान है,
जिसे वह अब समझ पाया है,
स्वयं के भीतर की शक्ति को,
वह अपने कर्म में समा दे।

निश्चय ही यह पथ कठिन है,
पर आत्म-ज्ञान के इस प्रकाश में,
हर कण बन जाए ऊर्जा का स्रोत,
और हर क़दम हो महान।

जग को जलाने का साहस अब,
उसके भीतर प्रकट हुआ,
नायक से महानायक बने,
यह उसकी पहचान हुआ।

अब वह जानता है जीवन का अर्थ,
उसका उद्देश्य, उसकी परिभाषा,
वह स्वयं ही है अपने भाग्य का निर्माता,
और यही है उसकी आत्मा की अभिलाषा।
***

चतुर्थ सर्ग: महान संघर्ष


युगों से जल रही ज्वाला, अब धधक उठी अपार,
नायक के हृदय में सुलगता, एक अपराजित अंगार।
जिस पथ पर उसने क़दम रखा, वह रक्तिम हो उठा,
संघर्ष की इस घड़ी में, उसका साहस चमक उठा।

तूफ़ान से टकराने की, अब उसने ठानी ठान,
भविष्य की हर आँधी को, अब नायक ने जाना पहचान।
हर चोट को सहा उसने, हर वार को झेला,
पर भीतर की ज्वाला से, कभी न वह घबराया।

असीमित थी शत्रुओं की सेना, अपार थे उनके बल,
पर नायक के संकल्प के आगे, सब थे मात्र छल।
लहू से रंगी थी धरा, चहुँ ओर था केवल हाहाकार,
पर नायक की आँखों में, था सिर्फ़ विजय का संचार।

शस्त्रों की गर्जना में भी, उसकी आत्मा मौन रही,
हर प्रहार से उसकी शक्ति, और प्रबल होती चली गई।
वह था एक योद्धा, जिसने कभी हार नहीं मानी,
संघर्ष की इस रणभूमि में, उसने निडरता से ठानी।

प्रत्येक शत्रु के प्रहार को, वह मुस्कुरा कर झेलता,
जीवन के इस महान संग्राम में, वह ख़ुद को खेलता।
हर घाव जो उसे मिला, वह बना उसका अलंकार,
रणभूमि में उसकी कीर्ति, गूंज उठी बारम्बार।

वह नायक जो कभी डरा नहीं, जिसने कभी घुटने नहीं टेके,
उसने अपने हौसले से, हर बाधा के पंख उखाड़े।
हर कठिनाई के समक्ष, उसने दिखाया अपना बल,
वह नायक नहीं, अब बन गया महानायक का चल।

जैसे-जैसे युद्ध बढ़ता गया, उसकी ज्वाला और प्रबल हुई,
हर प्रहार से उसकी शक्ति, और भी विशाल हुई।
वह अकेला था रणभूमि में, पर उसके भीतर थी एक सेना,
हर शत्रु को उसने अपनी शक्ति से, मिटा दिया बिना कोई देना।

उसके हर क़दम ने धरती को, हिला कर रख दिया,
वह जिस राह पर चला, वह पथ स्वयं जगमगाया।
संघर्ष की इस घड़ी में, उसने नया इतिहास रचा,
उसका नाम बन गया, शौर्य और विजय का सचा।

अब वह नायक नहीं, वह महानायक है,
उसकी संघर्ष यात्रा का यह सर्ग, उसके महान कर्म का गवाह है।
हर युग में उसकी गाथा, गूंजेगी गर्व के साथ,
वह नायक जिसने अपने पथ को, बना दिया अमर अग्निपथ।

यह वह संघर्ष था, जिसने नायक को नायकत्व से महानायकत्व तक पहुँचाया,
उसके जीवन का यह महान अध्याय, अब युगों तक गाया जाएगा।
***

पंचम सर्ग: विजय और विरासत


समाप्त हुआ वह संघर्ष महान,
जिसने नायक को तपाया था,
हर विपदा को उसने हराया,
हर कठिनाई को अपनाया था।

परंतु यह विजय केवल रण की नहीं थी,
यह विजय थी उसके आत्मबल की,
जो उसने भीतर से प्राप्त किया,
अपने अज्ञान को मिटा दिया।

शत्रुओं का संहार किया उसने,
परंतु सबसे बड़ा शत्रु था उसका अहंकार,
जो भीतर ही भीतर छिपा हुआ,
अब नायक के समक्ष था वह प्रतिकार।

उसने किया सामना स्वयं से,
अपने भीतर के उस अंधकार से,
जो उसे कमज़ोर बनाता था,
जो उसे मार्ग से भटकाता था।

आत्म-ज्ञान की ज्योति जलाई,
उसने अपने भीतर की शक्ति को पहचाना,
न केवल बाहरी शत्रुओं को,
बल्कि अपने अंदर के अंधकार को भी हराया।

यह विजय थी उसके संकल्प की,
जो कभी न टूटा, न हारा,
यह विजय थी उसके धैर्य की,
जो हर तूफ़ान में भी अडिग रहा।

अंततः वह खड़ा हुआ विजयी,
पर यह विजय थी भीतर की शांति की,
जिसने उसे महानायक बनाया,
जिसने उसकी आत्मा को पवित्र किया।

अब वह केवल एक योद्धा नहीं था,
वह था एक पथ प्रदर्शक,
जिसने अपने जीवन की हर कठिनाई को,
आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्ग बना दिया।

उसकी कथा अब नहीं रहेगी मौन,
उसके आदर्श बनेंगे युगों तक अमर,
उसकी विरासत को याद करेंगे लोग,
जिन्होंने उससे सीखा संघर्ष का अमरपथ।

वह नायक जिसने ख़ुद को जीता,
अब बन गया एक प्रेरणा का स्रोत,
उसकी विजय की कहानी से,
हर युग में नई आशा का संचार होगा।

उसके आदर्श जो उसने गढ़े,
वह न केवल उसकी, बल्कि हर व्यक्ति की राह बनेंगे,
जो उस अग्निपथ पर चलेगा,
वह उसके पदचिह्नों का अनुसरण करेगा।

यह उसकी विरासत है, उसकी पहचान,
जो समय के साथ और भी प्रबल होगी,
वह नायक जिसने अपना जीवन दिया,
वह अब अमर हो चुका है,
हर हृदय में बस चुका है।

अब जब भी कोई संघर्ष करेगा,
वह उसकी गाथा से शक्ति पाएगा,
हर युग में उसकी विजय की गूँज,
सदैव नए नायकों को जगाएगी।

यह उसकी विरासत है,
जो केवल उसके शब्दों में नहीं,
बल्कि उसके कर्मों में समाहित है,
जो आने वाले युगों तक,
हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी।

अग्निपथ का यह अंतिम सर्ग,
उसकी विजय और विरासत की गाथा कहता है,
यह नायक की नहीं,
बल्कि महानायक की कहानी है,
जो समय के साथ और भी उज्जवल होती जाएगी।
***

निष्कर्ष
"अग्निपथ" एक गहन और प्रेरणादायक काव्य यात्रा का समापन है, जिसमें नायक की जीवन-यात्रा, संघर्ष, और विजय की गहराई को अभिव्यक्त किया गया है। इस काव्य संग्रह के माध्यम से, हमने नायक की यात्रा के प्रमुख पहलुओं को दर्शाया है:

1. आत्म-खोज और संघर्ष: नायक की शुरुआत आत्म-खोज और संघर्ष से होती है, जहां वह अपने पथ की खोज करता है और समाज की चुनौतियों का सामना करता है। यह संघर्ष न केवल बाहरी बल्कि आंतरिक भी है, जो उसे ख़ुद से और अपने मूल्यों से साक्षात्कार कराता है।

2. आत्मज्ञान और शक्ति: नायक के आत्मज्ञान की यात्रा उसे अपनी छिपी शक्ति और ज्ञान से अवगत कराती है। यह गहरी अंतर्दृष्टि उसे जीवन के उद्देश्य को पहचानने और उसकी दिशा निर्धारित करने में सहायक होती है।

3. महान संघर्ष: काव्य के चतुर्थ सर्ग में नायक के सबसे बड़े संघर्ष का वर्णन किया गया है, जो उसके जीवन की संपूर्ण यात्रा का सार है। यह संघर्ष न केवल उसके बाहरी शत्रुओं के साथ होता है, बल्कि उसके भीतर के अंधकार से भी होता है।

4. विजय और विरासत: अंतिम सर्ग में, नायक की विजय केवल बाहरी शत्रुओं पर नहीं होती, बल्कि अपने अज्ञान और अहंकार पर भी होती है। उसकी विरासत और आदर्श आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाते हैं, और उसका जीवन एक अमर उदाहरण प्रस्तुत करता है।

"अग्निपथ" का निष्कर्ष नायक की यात्रा की पूर्णता और उसकी उपलब्धियों का सारांश प्रस्तुत करता है। यह काव्य संग्रह हमें यह सिखाता है कि सच्ची विजय केवल बाहरी बाधाओं को पार करने में नहीं, बल्कि अपनी आंतरिक कठिनाइयों और संकोच को पराजित करने में भी है। 

नायक की यात्रा और उसकी प्राप्तियों के माध्यम से, "अग्निपथ" पाठकों को आत्म-समर्पण, साहस, और निरंतर प्रयास की प्रेरणा प्रदान करता है। यह संग्रह जीवन की जटिलताओं को समझने और अपने व्यक्तिगत संघर्षों का सामना करने में एक सशक्त मार्गदर्शक बनकर उभरता है।

अंततः, "अग्निपथ" एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि हर व्यक्ति के भीतर शक्ति और क्षमता होती है, जो उसे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने और अपने जीवन को एक उद्देश्यपूर्ण दिशा देने में सक्षम बनाती है।

चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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