सूरज कभी बीमार नहीं होता - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

सूरज कभी बीमार होकर थकता नहीं है,
चलना ही उसकी नियत है, 
अगर सूरज थक गया
तो धरी की धरी रह जाएगी
सारी विरासत।
सूरज से हमें प्रेरणा मिलती है
कि अनवरत चलना,
आए मुसीबत कितनी भी
पर चलते ही रहना।
अंशुमाली वन प्रकृति और पर्यावरण का
सामंजस्य कर बिना थके
आगे बढ़ते रहना
तुम देव दिवाकर हो
लोग तुम्हें पूज्य मानते हैं।
तुम व्यक्ति को आरोग्यवान बनाते हो, 
तुम्हीं से वर्षा ऋतु आई है।
तरुणाई तुम्हारी तपन से आती है,
बादल भी घड़घडाते हैं, 
उगता सूरज
ढलता सूरज
कवि की कविता में
समा जाते हैं।
तुम्हीं तो ज्योतिष की
चाल सिखाकर अंगुली पकड़कर,
आगे बढ़ने का सबक़ सिखा जाते हो,
प्रभाकर ही तो तुम्हारी सन्तानो को 
सबक़ देता है।
सूरज से ही सब विरासत है
सूरज कभी थकता नहीं,
चलना उसकी नियति है।
अरे क़लमकारो अनवरत चलने वाले सूरज को
बीमार करोगे तो ये तो अमानत में खनामत है।
सूरज से ही सारा विश्व पर्यावरण
और सब कुछ सलामत है।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos