मध्यम वर्ग - कविता - सैयद इंतज़ार अहमद

संघर्ष करते रहो, कयोंकि
तुम मध्यम वर्ग हो,
तुम किसके काम के हो,
जो कोई तुमको सहारा देगा।

तुम में से आगे निकल चुके,
जो आज कामयाब बन बैठे हैं,
वो भी नहीं सोंचेंगे तुम्हारे लिए,
आख़िर सोंचे भी क्यों?
तुम उनके भी किस काम के हो,
जिनको तुमने चुन कर
बैठाया है सिंघासन पर, 
वो तपाक से उत्तर देंगे तुमको,
'तुम कोई अकेले थोड़े ही थे,
चुनने वाले उनको'।

तुम ही पागल बन बैठे थे न,
ख़ुद को जीवित रखने को,
दिखलावे के भ्रमजाल में,
तो भुगतेगा कौन?
कौन सहेगा संकट काल में,
पेट की मार और ऋण का बोझ।

अब भी न हुए सचेत और
न खोजी कोई युक्ति तो,
विलीन हो जाओगे सम्भव है,
नही रहेगा कोई मध्यम वर्ग।

सैयद इंतज़ार अहमद - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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