जीवन सुदृढ़ करो ना राम - कविता - कंचन शुक्ला

तन में शक्ति मन में भक्ति
नित्य नया जीवन दो राम,
संघर्षों को नींव बना कर
जीवन सुदृढ़ करो ना राम।

सतकर्मों का मोल बढ़ा
दुष्कर्मों को घटाओ राम,
आराधक की पीड़ा हरलो
मानव को वरदान दो राम।

आए जब अंतिम बेला तो
नयन बसे तुममे अभिराम,
जग में रहकर तुमको पाऊँ
स्मरण ना बिसरा देना राम।
 
हृदय वेदना तीव्र पुकारे 
कहाँ हो खोए सीताराम,
अंतस की अति पीड़ा का
नाश करो अब हे घनश्याम।

तन में शक्ति मन में भक्ति
नित्य नया जीवन दो राम,
संघर्षों को नींव बना कर
जीवन सुदृढ़ करो ना राम।

कंचन शुक्ला - अहमदाबाद (गुजरात)

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