जिनके क़ब्ज़े में पल नहीं होते - ग़ज़ल - अंदाज़ अमरोहवी

अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
तक़ती : 2122 1212 22

जिनके क़ब्ज़े में पल नहीं होते।
उनके हिस्से में कल नहीं होते।।

फेंक दे हाथ से ये तलवारे,
मसअले ऐसे हल नहीं होते।

सोच कर थक चुका हर इक ग़रीब,
झोपड़े क्यों महल नहीं होते।

ज़हर होता है उसके सीने में,
जिसके माथे पे बल नहीं होते।

ठोकरों से वफ़ा ज़रूरी है,
रास्ते यूँ सरल नहीं होती।

अंदाज़ अमरोहवी - अमरोहा (उत्तर प्रदेश)

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