अक्सर - कविता - ऋचा तिवारी

वो कहते हैं अक्सर, "औरत होने का फ़ायदा उठाती हूँ मैं",
पर कभी औरत होने का नुक़सान, क्या देखा है तुमने!
मौक़ा पाते ही, छेड़ने में, छूने में, मज़ा आता है तुमको,
पर वो रात, कैसे कटी है उसकी, ये दर्द कभी सोचा है तुमने!

सुनसान सड़को में, अक्सर, बे-फ़िक्र हो कर, घूमते देखा है तुमको,
पर इन्हीं सड़को में, अपनी ही परछाई से, डरने का दर्द, कभी सहा है तुमने!
अक्सर यूँ ही, बात बात में, थप्पड़ मारने की, आदत बना ली है तुमने,
पर सिसकियों में समेटे, इन आँसूओं को, बहते हुए, क्या देखा है तुमने!

अक्सर सफ़र में हमें देख कर, चिपक कर, बैठने की आदत बना ली है तुमने,
पर तुमसे दूरी बना कर, ख़ुद में ख़ुद को सिमटने की, चाहत कभी चाहा है तुमने!
हमेशा, कोई ना कोई दर्द रहता है तुमको, ये कई बार कहते, सुना है मैंने तुमको,
पर नौ महीने तुम्हें ख़ुद में रखकर, पैदा करने का दर्द, कभी सहा है तुमने!

ऋचा तिवारी - रायबरेली (उत्तर प्रदेश)

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