महेश "अनजाना" - जमालपुर (बिहार)
ख़ता तो नहीं - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"
शुक्रवार, जून 18, 2021
अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
तक़ती : 212 212 212 212
तुम से मिल न पाया, ख़ता तो नहीं।
कर के वादा न आया, ख़ता तो नहीं।।
गुज़रे लम्हों को याद, कर शब रोज़,
वाक़या ये सुनाया, ख़ता तो नहीं।
दिल पे लगी चोट तो, हम क्या करें,
बस दवा ना कराया, ख़ता तो नहीं।
बहुत मिल जाएँगे चाहने वाले,
बनूँ तेरा हम-साया, ख़ता तो नहीं।
तेरा मेरा मिलना, नहीं बख़्त में,
है आँखों में बसाया, ख़ता तो नहीं।
वो हरजाई निकली सनम क्या कहुँ,
चाह कर न भूल पाया, ख़ता तो नहीं।
बिछड़े तो क्या फ़िर मिल पाएँगे हम,
'अनजाना' सुख पाया, ख़ता तो नहीं।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विषय
सम्बंधित रचनाएँ
सिर्फ़ मरते हैं यहाँ हिन्दू, मुसलमाँ या दलित - ग़ज़ल - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
सीने से जो लगाता था तस्वीर क्या हुई - ग़ज़ल - ममता गुप्ता 'नाज'
मौसम है हर साल बदलते रहता है - ग़ज़ल - हरीश पटेल 'हर'
मार डालेंगी हमें उनकी यही अठखेलियाँ - ग़ज़ल - सैय्यद शारिक़ 'अक्स'
कैसे आवाज़ हमारी वो दबा सकते हैं - ग़ज़ल - अरशद रसूल
एक दो-दिन का है ख़ुमार, बस, और - ग़ज़ल - रोहित सैनी
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर