सावन की है पहली बारिश - कविता - राजकुमार बृजवासी

सावन की है पहली बारिश मोरनी बन जाऊँ मैं,
रंग बिरंगी पंख लगा के अंबर में उड़ जाऊँ मैं।
सावन की है पहली बारिश मोरनी बन जाऊँ मैं।।

कोयल कुके बाग़ों में राग मिलन के गाती है,
सर्द हवाएँ तन को छुए याद किसी की आती है।
बूँदों में है सरगम बजती मन को ये लुभाती है,
मिट्टी महके सोंधी-सोंधी मन में प्रीत जगाती है।
सावन आया पिया ना आए, सोच सोच अकुलाऊँ मैं,
रंग बिरंगी पंख लगा के अंबर में उड़ जाऊँ मैं।
सावन की है पहली बारिश मोरनी बन जाऊँ मैं।।

कारे बदरा शोर मचाए मन में कली खिल जाती है,
गेंदा गुलाब बेली चमेली मंद-मंद मुस्काती है।
बिखरा के महक हवाओं में सावन की कजरी गाती है,
झूम रही है डाली-डाली मन को यह भा जाती है।
सोलह बरस की बाली उमरिया दर्पण देख लजाऊँ मैं,
रंग बिरंगी पंख लगा के अंबर में उड़ जाऊँ मैं।
सावन की है पहली बारिश मोरनी बन जाऊँ मैं।।

राजकुमार बृजवासी - फरीदाबाद (हरियाणा)

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