यही सोचता हूँ - ग़ज़ल - पारो शैवलिनी

अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 1222 1222 1222 122

लिखूँगा तुम पे ग़ज़ल, हर रात यही सोचता हूँ।
बनेगी या नहीं कोई बात यही सोचता हूँ।।

तुमसे कुछ कह ना सका इसका मलाल है मुझको,
न जाने होगी कब मुलाक़ात यही सोचता हूँ।

तेरी ख़ामोश निगाहों पे ये ज़ुल्फ़ों की घटा,
कर ना दे फिर कहीं बरसात यही सोचता हूँ।

दिल के कोने में दुल्हन सा सजा देखा तुमको,
कौन आएगा लेकर बारात यही सोचता हूँ।

आँखों में आँसू होठों पे नग़्मा दिल में उदासी 
होगी क्या इससे बुरी हालात यही सोचता हूँ।

पारो शैवलिनी - चितरंजन (पश्चिम बंगाल)

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