जिएँगे हम जितेंगे हम - कविता - ममता रानी सिन्हा

भले हीं धरा पर काल भयंकर है,
पर हम भी तो यहाँ के धुरंधर हैं,
इस काल को भी हराएँगे हम,
जीवन पुष्प फिर से खिलाएँगे हम,
इसलिए जिएँगे हम, जितेंगे हम,
तभी जिएँगे हम, जब जितेंगे हम।

भले ही हमारा शत्रु अदृश्य है,
पलपल बदलता परिदृश्य है,
मगर शब्दभेदी भी तो हैं हम,
और रणभेदी भी तो हैं हम,
इसलिए जिएँगे हम, जितेंगे हम,
तभी जिएँगे हम, जब जितेंगे हम।

माना ये लंबी रात अमावस्या की है,
दुष्टशत्रु ने एक कठिन समस्या दी है,
पर सहस्त्रों सूर्य का जोत जलाएँगे हम,
और एक नया सबेरा भी लाएँगे हम,
इसीलिए जिएँगे हम, जीतेंगे हम,
तभी जिएँगे हम, जब जितेंगे हम।

माना अभी सारा संसार सुना पड़ा है,
और मानव भी मानव से दूर खड़ा है,
पर इस बाग में चहचहाहट लाएँगे हम,
एकबार फिर अपनों के गले लग जाएँगे हम,
इसीलिए जिएँगे हम, जितेंगे हम,
तभी जिएँगे हम, जब जितेंगे हम।

माना हम में से कुछ अभिमन्यु थें,
पर भेदें भी तो वही चक्रव्यूह थें,
देकर उनको श्रद्धांजलि फिर से,
यहाँ विजय बिगुल बजाएँगे हम,
इसीलिए जिएँगे हम, जितेंगे हम,
तभी जिएँगे हम, जब जितेंगे हम।

माना यहाँ चारों हैं तरफ़ अँधेरा है,
मानव साँसों को तम ने आ घेरा है,
पर आदि से प्रचंड शत्रुघात्री हैं हम,
और भयंकर कालरात्रि हैं हम,
इसीलिए जिएँगे हम, जितेंगे हम,
तभी जिएँगे हम, जब जितेंगे हम।

जो लड़कर चले गएँ वो वीर थें,
सदा जग में मार्गप्रशस्ती कहलाएँगे,
मार्ग दिखा लड़ना सीखा गएँ वो,
अब रणबाकुरें कहलाएँगे हम,
इसीलिए जिएँगे हम, जितेंगे हम,
तभी जिएँगे हम, जब जितेंगे हम।

आत्मसात करेंगे प्रकृति से शक्ति को,
अचल रखेंगे अपनी देव भक्ति को,
अपनी आत्मशक्ति उद्वेलित करेंगे हम,
स्वयं की ऊर्जा प्रज्ज्वलित करेंगे हम,
इसीलिए जिएँगे हम, जितेंगे हम,
तभी जिएँगे हम, जब जितेंगे हम।

माना शमशान अभी हँसने लगा है,
और हृदय भी द्विखण्ड बंटने लगा है,
परंतु कंस और रावण वध किएँ तो,
इस मरीचि शत्रु को भी मारेंगें हम,
इसीलिए जिएँगे हम, जितेंगे हम,
तभी जिएँगे हम, जब जितेंगे हम।

इस मुश्किल से भी निकल जाएँगें,
अपने सामर्थ्य से ही विजय पाएँगे,
आत्मशक्ति का साथ न छोड़ेंगे हम,
इस छुपे हुए शत्रु को भी तोड़ेंगे हम,
इसीलिए जिएँगे हम, जितेंगे हम,
तभी जिएँगे हम, जब जितेंगे हम।

माना प्राणवायु पे काल का पहरा है,
पर विपत्तिकाल भी कबतक ठहरा है,
यह दुर्दिन भी अब बस गुज़र जाएगा,
और एक नव सुखद सबेरा पाएँगें हम,
इसीलिए जीएँगे हम, जितेंगे हम,
तभी जीएँगे हम, जब जितेंगे हम।

माना की अभी महामारी प्रलयंकर है,
और चीत्कारता विशाल अम्बर है,
पर यहाँ जीवन के संतरी भी तो हैं हम,
और देव वैध धन्वंतरि भी तो हैं हम,
इसीलिए जिएँगे हम, जितेंगे हम,
तभी जिएँगे हम, जब जितेंगे हम।

हम हार जाएँ ऐसा हो नहीं सकता,
शत्रु जीत जाए ऐसा होने न देंगें हम,
अब यहाँ काल को नियंत्रित करेंगें हम,
जीवन को फिर से जीवित करेंगें हम,
इसीलिए जिएँगे हम, जितेंगे हम,
तभी जिएँगे हम, जब जितेंगे हम।

माना एक अल्प ठहराव सा आ गया है,
आज़ादी पे पाबन्दियों का पड़ाव आ गया है,
मगर समस्या पे व्रजपात करेंगें हम,
इस ठहराव से हीं शुरुआत करेंगे हम,
इसीलिए जिएँगे हम, जितेंगे हम,
तभी जिएँगे हम, जब जितेंगे हम।

माना नाश हो रहा साँसों का मूर्धन्य है,
परन्तु हम मानव हैं, रचनाकार भी है,
विषमताओं पर विजय हमारी हीं होगी,
और फिर एकबार सृजनकार बनेंगें हम,
इसीलिए जिएँगे हम, जितेंगे हम,
तभी जिएँगे हम, जब जितेंगे हम।

साथ दे एक दूसरे का हर पलक्षण,
और बाँट लें एक दूसरे का हर ग़म,
आपस में जुड़ आत्मबल बने हम,
सहयोग, सहभागिता और संबल बने हम,
तभी जिएँगे हम, जब जितेंगे हम,
इसीलिए जिएँगे हम, जितेंगे हम।

ममता रानी सिन्हा - रामगढ़ (झारखंड)

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