तनहा-तनहा
पेड़ों के साए तले,
यादें तुम्हारी लेकर
सपने हम बीने।।
रुक-रुक के चलना
चल-चल के रुकना
मुड़ना कभी-कभी,
साथ तुम्हारे
सागर किनारे
उड़ना कभी-कभी,
देखो-देखो
धरती गगन से मिले।।
सदा याद आया
है आता रहेगा
तेरा-मेरा फ़ासला,
आ पास दिल के
दुरी मिटा दे
बढा दे मेरा हौसला।
धीरे-धीरे
मंज़िल को चूम लें।।
पारो शैवलिनी - चितरंजन (पश्चिम बंगाल)