रेत-सी ज़िंदगी मुट्ठियों में भरी,
कब फिसल जाए इसका भरोसा नहीं।
खुल न जाएँ किसी हाल में मुट्ठियाँ,
बस यही डर हमें जीने देता नहीं।
टूट जाए नहीं साँस की शृंखला,
ढह न जाए अटारी बनी रेत की।
रेत है ज़िंदगी, ज़िदगी रेत है,
सोचने में कभी रात सोया नहीं।
भाईचारा अगर साथ क़ायम रहे,
गर्मियों में अगर रेत में हो नमी।
हौसला हो अवध नेह के साथ में,
रेत की ज़िंदगी में भी धोखा नहीं।
डॉ. अवधेश कुमार अवध - गुवाहाटी (असम)