तस्वीर - चौपाई छंद - सरिता श्रीवास्तव "श्री"

इक तस्वीर चित्रकार बनाई।
उसने गुरुजी को दिखलाई।। 
इक संदेश मुझे देना है। 
तस्वीर आधार रखना है।। 

तस्वीर में अगर कमियाँ हैं। 
कहो गुरुजी आप गुनियाँ हैं।। 
कहा गुरू ने तब समझाई। 
तस्वीर चौराहे रखवाई।। 

कमियाँ तस्वीर देख बताओ। 
यहाँ नज़रिया अपना लाओ।। 
दूजे दिन तस्वीर उठाई। 
गिनती कमियों की करवाई।। 

चित्र पर कमियाँ ही कमियाँ हैं। 
सारे कागज पर कमियाँ हैं।। 
अब हताश चित्र कार हुआ है। 
पास गुरू के पहुँच गया है।।

चित्र खोलकर सामने देखा। 
निगाह भरकर गुरु ने देखा।। 
चित्र देखकर हँसने लगे हैं। 
शिष्य को समझाने लगे हैं।।  

यही नज़रिया जग रखता है। 
पल-पल पर बदला करता है।। 
होशियार तुम भी बन जाओ। 
विचार अपने ख़ुद बन जाओ।। 

फिर से तस्वीर को रखवाया। 
प्रपत्र साथ में एक लगाया।। 
क्या-क्या चित्र में कमियाँ है। 
देख गौर से क्या कमियाँ हैं।। 

सुधार तस्वीर में करना है। 
प्रपत्र पर कमियाँ लिखना है।। 
कमी छाँटने आगे बढ़ते। 
सुधारने से पीछे हटते।। 

दूजे दिन तस्वीर उठाई।
कोई कमी नज़र कब आई।। 
तस्वीर पर निशान नहीं था। 
प्रपत्र में इल्ज़ाम नहीं था।। 

इंसां कमी निकाल रहा है।
कमी को कब सुधार रहा है।। 
नज़रिया यही हम सबका है। 
पल-पल बदला "श्री" रहता है।। 

सरिता श्रीवास्तव "श्री" - धौलपुर (राजस्थान)

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