पति-पत्नी संवाद - एकांकी - सरिता श्रीवास्तव "श्री"

पति:- माँ की तबियत ख़राब है आज तुम छुट्टी लेलो।
पत्नी:- नहीं मेरी क‌ई छुट्टियाँ हो चुकी हैं। इस बार छुट्टी तुम लेलो।

पति:- मै छुट्टी कैसे ले सकता हूँ कल मेरी ज़रूरी बैठक है।
पत्नी:- बैठक में तुम्हारे सहकर्मी शामिल हो सकते है। तुमने लम्बे समय से कोई छुट्टी ली भी नहीं है। तुम्हें मिल भी जाएगी।

पति:- दफ़्तर में काम का बहुत दबाव है, मुझे छुट्टी नहीं मिलेगी, तुम छुट्टी लेलो।
पत्नी:- नहीं! पिछले हफ़्ते बबलू की तबियत ख़राब हुई थी, तब मेरी तीन छुट्टियाँ हो ग‌ईं। काम का दबाव बढ़ जाता है बाॅस भी उखड़ते हैं। मैं छुट्टी नहीं ले सकती।

पति:- छुट्टी तो तुम्हें लेनी पड़ेगी!
पत्नी:- क्यों?
पति:- क्योंकि ये तुम्हारा फ़र्ज़ है तुम इस घर की बहू हो।
पत्नी:- और तुम्हारा "फ़र्ज़ अपने माता-पिता के लिए क्या कुछ भी नहीं है।"

पति:- है, है ना लेकिन माँ बीमार है इसलिए, पिता बीमार होते तो देखभाल कर लेता! लेकिन माँ...
पत्नी:- माँ है तो क्या हुआ डाॕक्टर के पास दिखाने ही तो ले जाना है।
पति:- सिर्फ़ डाॕक्टर को दिखाने ही कहाँ, माँ को बार-बार शौचालय भी तो ले जाना होता है।
पत्नी:- तो इसमेें क्या दिक्कत है मैं भी तो करती हूँ ये सब।

पति:- माँ एक औरत है, "औरत की देखभाल औरत ही तो करेगी।"
पत्नी:- माँ औरत, "तुम्हारी माँ तुम्हारे लिए औरत कैसे हो सकती है?" तुम्हारे लिए वो सिर्फ़ माँ है औरत मर्द से परे, सबसे ऊपर, सर्वोच्च। मुझे तुम्हारी सोच पर आश्चर्य है तुम ऐसा भी सोच सकते हो अपनी माँ के लिए।

पति:- अरे! नहीं, "नहीं मेरा वो मतलब नहीं है जो तुम समझ रही हो। मैं तो बस छुट्टी के लिए कह रहा हूँ।" 
कृपया इस बार लेलो अगली बार मैं तुम्हें नहीं कहूँगा।
पत्नी:- लेकिन इस बार क्यों नहीं, "मेरी माँ पिछले महीने
बीमार पड़ी थीं तो मैं डॉक्टर के पास भी ले ग‌ई वहाँ जाकर उनकी देखभाल भी करती थी और यहाँ तुम्हारी माँ और घर भी संभालती थी।" मेरी किसी ने मदद की क्या? नहीं!

पति:- मैं सब मानता हूँ। कृपया इस बार मदद करो।
पत्नी:- ज़रूर करती, "अगर तुम कभी मेरी माँ या पापा को डॉक्टर के पास ले ग‌ए होते, नहीं! जब कभी वे यहाँ आते हैं तुम उनसे बात तक नहीं करते! वो सिर्फ़ अपनी बेटी से मिलकर चले जाते हैं। मैं भी तो उनकी इकलौती बेटी हूँ मेरे अलावा कौन उनकी देखभाल करेगा वे हमसे रहते भी दूर हैं।"

क्या सास ससुर सिर्फ़ महिला के होते हैं पुरुष के नहीं, क्या महिला स्टाम्प पर लिख कर आती है कि सास ससुर की सारी ज़िम्मेदारी उस पर है और पुरुष की उसके सास-ससुर के प्रति कोई ज़िम्मेदारी नहीं? ये दोहरी मानसिकता क्यों? 

आज महिला कमा कर भी लाती और बना कर भी खिलाती है लेकिन घर का काम आधा-आधा नहीं बँटा वह महिला के ही ज़िम्मे है क्यों? मैं तुम्हारे जैसी नहीं हो सकती! मैं अपने बेटे के सामने ग़लत उदाहरण नहीं रख सकती, मैं तुम्हारे माता-पिता की देखभाल करती थी और करती रहुँगी लेकिन तुम्हें भी समझना होगा…।

सरिता श्रीवास्तव "श्री" - धौलपुर (राजस्थान)

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