लो फिर छा गया है कोना कोना।
कोहराम फिर मचाया है कोरोना।
जो हद में रहते हम सभी मिलकर,
ना पड़ता फिर से इस कदर रोना।
बे-ख़ुदी में रहे यूँ, बे-ख़बर की तरह,
अब खेल कोई इसको समझो ना।
अजनबी बेवफ़ा अगर छु जाए तो,
रंग रूप चाहे गोरा हो या सलोना।
लाखों आए हैं इनके चपेट में यहीं,
रसूख़ वाले इसकोे कम समझो ना।
सड़क पे ना निकले कोई बे-वज़ह,
मास्क पहनो, साबुन से हाथ धोना।
दिल के करीब रहो, फ़ासले बनाकर,
'अनजाना' सितमगर से यूँ डरो ना।
महेश "अनजाना" - जमालपुर (बिहार)