सोचा था परिवार हमारा
बहुते आगे जाएगा।
मात पिता गुरु सेवा करके
अतुलित पुण्य कमाएगा।
इस नाते घर में रहकर भी
सुख दुख सब स्वीकार किया।
हमने बहुत विचार किया...
हम तो मानव ही नहीं अपितु
हर प्राणी से करते प्रेम।
और समय निकाल निकाल कर
लेते सबकी कुशल छेम।
पर छोटा जब दीर्घ बना तब
फिर भी ना तकरार किया।
हमने बहुत विचार किया...
छोटे चाहे बड़े सभी ने
समय समय पर जूल दिया।
छोटी छोटी बातों को भी
अनजाने में तूल दिया।
समय समय पर कोशिश भी की
गलत सदा इंकार किया।
हमने बहुत विचार किया...
जब भी अपनी पड़ी ज़रूरत
आगे बढ़, हाथ बटाया।
घड़ी मुसीबत जब भी आई
हाथ निज हमने बढ़ाया।
पी आए जब धो के उसको
मैं तब भी इज़हार किया।
हमने बहुत विचार किया...
हम उदाहरण नहीं खोजते
रामायण अरू गीता से।
ख़ुद उदाहरण बन जाओ सब
सुधारकर निज मीता को।
नहीं बेर ना बेल बनें हम
ना सुन्दर संसार दिया।
हमने बहुत विचार किया...
महेन्द्र सिंह राज - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)