जीवन में साहित्य ज़रूरी,
विविधता के साथ ज़रूरी।
सतत एकरस लेखन से,
ज्ञान-विकास में बढती दूरी।।
जीवन के प्रारब्ध में अंकुर,
शनैः शनैः नवाचार कराती।
शाखाएँ नित बढती जाती,
फल-फूलों से फिर लद जाती।।
संवेदना जब मन छू जाती,
अनूठी रचना रच जाती।
आशा के पुष्प सी कोमल,
कली कली सी खिल जाती।।
पथ राहों के कंटक में से,
धाराए नित राह बनाती।
जग में एक नयी सोच से,
अश्वमेध सा नाम कमाती।।
अजय गुप्ता "अजेय" - जलेसर (उत्तर प्रदेश)