लॉकडाउन 3 और मधुशाला - गीत - अजय गुप्ता "अजेय"

यह रचना उस समय लिखी गई थी जब लॉकडाउन 3 में पंजाब व अन्य राज्यों के दबाव के कारण ठेके खोले गए थे और जिससे सड़कों पर लम्बी लम्बी लाइन लगाकर कोरोना गाइडलाइंस की धज्जियाँ उड़ाई गई।

कोरोना के काल में, अजब जगत नीत।
देवालय में ताले, गूँजे मदिरालय संगीत।।

देवालय संचय करे, मदिरा करे न प्रीत।
माया की जुगत में, बदली शासन नीत।।

नगर गाँव महानगर बंद,
लटका जग भर में ताला।
छाती पर मूँग दल रही,
खुली मधुशाला हाला प्याला।।

लॉकडाउन की ऐसी तैसी,
सोशल डिंसटेंसिग को धो डाला।
ज़ख्मों पर नमक छिड़क रही,
खुली मधुशाला हाला प्याला।।

मंदिर मस्जिद सब बंद हुए,
हे प्रभु! क्या है होने वाला।
कोरोना से लुकाछिपी खेल रही,
खुली मधुशाला हाला प्याला।।

दो जून छिनी रोटी पेट भूखा,
तर कंठ कर रहा साक़ी हाला।
फिर से माया की जुगत में,
खुली मधुशाला हाला प्याला।।

दीन भूख मिटाने खुले धन-धान्य भंडार,
मध्यम जोहे बाट कब आए सुध लेने बाला।
लम्बी तंग क़तारों में महामारी ला रही,
खुली मधुशाला हाला प्याला।।

अजय गुप्ता "अजेय" - जलेसर (उत्तर प्रदेश)

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