आँखों को ख़्वाब दीजिए - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"

हर आँखों में ख़्वाब दीजिए।
बस हौसलों में ताब दीजिए।

मुल्क की तक़दीर जो बदले, 
हर हाथ में किताब दीजिए।

नफ़रत मिटे इस जहां से,
मोहब्बत लाजबाव दीजिए।

हर उस नापाक दिल को,
बस बद्दुआ ख़राब दीजिए।

इस जहां में धोखे बहुत,
भरोसे का अहबाब दीजिए।

हुए जो गुनाह के सिलसिले,
गुनाहों का हिसाब दीजिए।

'अनजाना' लुत्फ़ मुज्जसम लेे,
मुस्तक़बिल का ख़्वाब दीजिए।

महेश "अनजाना" - जमालपुर (बिहार)

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