सुना है साहब ने रेत का समन्दर बेच दिया है,
पता करो ओर क्या अंदर ही अंदर बेच दिया है।
पता चला सफ़र-ओ-संचार सब कुछ था हमारा,
बेचा ऐसे, जैसे प्याज-ओ-चुकन्दर बेच दिया है।
चढ़ के सिढी पर जिस मंजिल तक पहुँचा था वो,
उसी ने सिढी के पाँव काट कर, फंदर बेच दिया है।
जिस मकसद से लाऐ हम उसको सुनो यारो,
उफ्फ उसी ने हमको बना के बंदर बेच दिया है।
सोचा हमने, अब हर हाथ को होगी रोजी रोटी,
हद कर दी ख़्वाब हमारे, बन के कलंदर बेच दिया।
है वक़्त अभी भी देखेंगे ओर क्या बिकेगा "जैदि",
सत्तर का था माल सारा दस के अंदर बेच दिया है।
एल. सी. जैदिया "जैदि" - बीकानेर (राजस्थान)