ओ नट नागर, यदुकुल नंदन, माधौ, कृष्ण, कन्हैया।
इन नैनन में आन बसो प्रभु, मुरली मधुर बजैया।।
मन अधीर तन तप्त अचेतन, छाया तिमिर घनेरा।
स्वार्थ, लोभ, मद, मोह, ईर्ष्या, काम, क्रोध का डेरा।
घोर वासना कसकर जकड़े छल प्रपंच भरमाते-
आलस, औ' अभिमान डालते, समय-समय पर फेरा।
करो नाथ कल्याण उवारो, पार लगा दो नैया।
इन नैनन में आन बसो प्रभु, मुरली मधुर बजैया।।
जग की कुत्सित असत अमंगल, विकट व्याधियाँ फैलीं।
सत्य, सुमंगल, न्याय, प्रेम की, हुई भावना मैली।
मन बुनता जंजाल स्वार्थ के, हवस हुई है हावी-
पल-पल माया क्रूर सर्पिणी, डसती विकट विषैली।
आर्द्र भाव से तुम्हें पुकारूँ, बलदाऊ के भैया।
इन नैनन में आन बसो प्रभु, मुरली मधुर बजैया।।
तुमने अपने सब भक्तों के, संकट सदा हरे हैं।
बाधायें संघर्ष मुसीबत, हँस कर दूर करे हैं।
मेरी भी बधाएं हर लो, सभी अमंगल काटो-
हमनें श्रद्धा से चरणों में, शब्द प्रसून धरे हैं।
भव सागर में जीव आत्मा, के ओ! कुशल खिवैया।
हाथ जोड़ कर करूँ प्रार्थना, पार करो भव नैया।
इन नैनन में आन बसो प्रभु, मुरली मधुर बजैया।।
श्याम सुन्दर श्रीवास्तव "कोमल" - लहार, भिण्ड (मध्यप्रदेश)