गुरु मानस हो पूत सम, शिष्य बने अभिमान।
बिना भेद सब जन सुलभ, ज्ञान मिले वरदान।।
जनमन अभिवन्दन सदा, लोकतंत्र अभिमान।
संविधान करवा रहा, लोकस्वस्ति का भान।।
जननी जन्मभूमि उभय, पावन दें सम्मान।
पर माता से श्रेष्ठ है, जन्मभूमि अभिमान।।
लाल चौक से लाल किला, हो तिरंग अभिमान।
गायन वन्दे मातरम्, अभिनंदन सम्मान।।
सही गलत का फासला, करने में अनज़ान।
गुणी वचन नहि मानता, मदमाता अभिमान।।
मानक नित सौभाग्य का, नार्य शक्ति अभिमान।
चुटकी भर सिन्दूर से, सजी मांग सम्मान।।
नमन करे कवि कामिनी, दे श्रद्धा सम्मान।
स्वामी जी गाथा विजय, गाए मन अभिमान।।
प्रगति राष्ट्र जग वे बने, निज भाषा अभिमान।
विरत राष्ट्रभाषा जगत, हो वजूद अवसान।।
शौर्यशक्ति से शान्ति हो, प्रेमशक्ति सम्मान।
त्याग शक्ति सुख प्राप्ति हो, राष्ट्र शक्ति अभिमान।।
हेतु सतत मानव पतन, लोभ मोह अभिमान।
कोप शोक तज सत्य पथ, मिले प्रगति सम्मान।।
सोच सभी की एक सी, साहित्यिक अभिमान।
करे स्वयं नित वन्दना, इतर करे अपमान।।
बिना काम अभिमान का, स्वार्थ बना गठजोड़।
सत्य न्याय तूफ़ान में, उड़े होश हर मोड़।।
ज्ञानविरत मतिहीनता, ऐंठन नित अभिमान।
सूख ठूँठ तरु राख सम, नर का हो अवसान।।
निर्विवेक विद्वान नित, करे कपट आधान।
पर निन्दा रत हो मुदित, अपमानित अभिमान।।
आज मीत पाऊँ कहाँ, हो श्रीकृष्ण समान।
सुख विपदा में साथ दे, मीत करे अभिमान।।
आज करें जयघोष हम, भारत और प्रधान।
दीप जलाएँ शान्ति का, जगे वतन अभिमान।।
शंखनाद करती कमल, ले सशक्त अभियान।
तन मन धन माँगे वतन, पूरण हो अरमान।।
दे निकुंज का कवि हृदय, साश्रु मुदित अभिमान।
वर्धापन वैज्ञानिकों, आप राष्ट्र की शान।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली