दहेज दानव - कविता - विनय "विनम्र"

दहेज के बाज़ार में बिकती हुई ये बेटियाँ,
सुन्दरता के मापदंड में टिकती नहीं ये बेटियाँ,
शासन भी इंकलाब संग अकसर लगाता है गुहार,
स्लोगन में मेरे देख लो "बढती व पढती बेटियाँ",
बंदरों की फौज में माता पिता की खिलखिलाहट,
शादी से पहले बहू में क्या देखती हैं बेटियाँ?
हर शख़्स देनें में मगन है दूसरों को दोष बस,
समाज के हर एक घर में रो रही हैं बेटियाँ।।

विनय "विनम्र" - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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