चल प्यार करते है - कविता - संतोष ताकर "खाखी"

थे जो थोड़ा सिमटे हुए, 
चल अब विस्तार को चलते हैं
थी थोड़ी सी दूरी जो सिमटी
चल अब गले लग दूर करते है
थे दिल जो दूर रूह भी दूर
अब बाहों में बाहे करते हैं
चल प्यार करते है।

मत इश्क़ का जूनून जगा, 
मत तेरी मेरी कमियाँ गिना।
हो चलते है अब साथ दूर तक,
तेरा मेरा फिर से मिलन करते है,
चल प्यार करते हैं।

थोड़ी सी समझदारी
थोड़ा सा समझौता करते हैं,
आ अब पुरानी क़लम से 
जज़्बात नए लिखते है।
कुछ आगे ना रहा,
पीछे छूटे को छूट जाने देते है,
चल प्यार करते है।

एक वजूद तेरा, एक वजूद मेरा,
एक आईने में हू-ब-हू अपना करते है।
दुनिया जो देखें नज़्म-नज़रे कैद करते हैं
यूँ झुठलाती इस अक्ष को बेनकाब करते है
तेरा मेरा अहसास कर, चल प्यार करते हैं।

मत परेशानी का आलम जगा, 
मत इसकी उसकी नज़रों में निम्र गिरा।
छुटी थीं ख़्वाईशें अधूरी जहाँ से,
अब मिलकर पूरी करते हैं,
अग्नि नाथ किए एक वादे को।
कुछ रफ़्ता करते हैं,
चल प्यार करते है।।

सन्तोष ताकर "खाखी" - जयपुर (राजस्थान)

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