पी रहा हूँ मैं - ग़ज़ल - मनजीत भोला

लबालब प्यार का प्याला अभी तक पी रहा हूँ मैं,
कि ज़िंदा है कोई मुझ में उसी को जी रहा हूँ मैं।

 हुआ बदनाम मैं बेशक मगर उसको न होने दूँ,
 ज़बां दी है उसे मैंने लबों को सी रहा हूँ मैं।

 हुए बच्चे बड़े तो छोड़ दी पीनी निगाहों से,
 वगरना इन शराबों का बहुत आदी रहा हूँ मैं।

 दर्द के बीज दिल में ख़ुद नहीं बोता कोई यारो,
 खिलाता है कोई गुल बस हवा पानी रहा हूँ मैं।

 दिखाई वो दिया जैसा उसे वैसा कहा मैंने,
 यही गर है बग़ावत तो सुनो बाग़ी रहा हूँ मैं।

 लुटादी ज़िंदगी जिनपे वही उकता गए 'भोला'
 यही दिन देखने को क्या यहाँ बाकी रहा हूँ मैं।

 मनजीत भोला - कुरुक्षेत्र (हरियाणा)

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