तेरा शैदा हैं कवि - कविता - कर्मवीर सिरोवा

मेरा आशियाना ढूँढती हैं 
तेरी आँखों का जलना,
आओ, देखना शब कहेगी 
इस घर में चाँद रहता हैं।

निगाहों को जब से 
तेरा दीदार हुआ हैं,
अब्तर इस दिल का 
हर कोना जवां लगता हैं।

तेरी आँखों में 
कोई अक्स दिख रहा हैं,
मेरी तस्वीर हैं 
या कोई धोखा लगता हैं।

राहतों की खोज में 
तुझसें मुलाक़ात हो गई,
मुंतज़िर नयनों में 
अब तेरा चेहरा रहता हैं।

जीवन इस क़दर बरसा हैं 
तेरी आँखों से,
जब से तूने आँखें फेरी, 
मेरा दम घुटता हैं।

तेरी रानाई पे 
हुजूम नज़रों का लगता हैं,
शाद हैं वो चश्म 
जिसें तेरा दीदार मिलता हैं।।

क्यूँ निगाहों को अब
तेरा इंतज़ार रहता हैं,
कर्मवीर को घर भी अब 
परेशाँ करता हैं।।

निकले हैं तुम्हारी जूस्तजू के लिए 
इस भीड़ में,
मैं दुनिया में हूँ 
तेरा मेरा होना हसीं ख़्वाब लगता हैं।

ख़्यालों की कच्ची रूह को 
जिस्म परोसता हूँ,
तेरा शैदा हैं कवि,
तुझें सरापा-ए-नक्श लिखता हैं।

कर्मवीर सिरोवा - झुंझुनू (राजस्थान)

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