चले आओ - ग़ज़ल - रोहित गुस्ताख़

पुकारा है तुम्हें दिल से चले आओ चले आओ।
सुनो जानां हमें मिलने चले आओ चले आओ।।

रगेंगे हम तुम्हारे गाल उल्फ़त के गुलालों से,
हमें भी यार तुम रंगने चले आओ चले आओ।

कफ़स को तोड़ करके तुम ज़माने को भुला करके,
दिलों के बाग में खिलते चले आओ चले आओ।

लगा लो तुम गले से अब भुला के रंजिशें सारी,
पुराने ज़ख्म को सिलने चले आओ चले आओ।

लिखेंगें आसमाँ पर हम सितारों से तुम्हारा नाम,
मुहब्बत यार तुम करने चले आओ चले आओ।

लबों से चूम लो माथा निभा लो प्यार की रस्में,
ग़ज़ल गुस्ताख़ की सुनते चले आओ चले आओ।

रोहित गुस्ताख़ - दतिया (मध्य प्रदेश)

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