प्रेम प्रकाश बोहरा - किशनगढ़, अजमेर (राजस्थान)
हे! स्त्री - कविता - प्रेम प्रकाश बोहरा
बुधवार, फ़रवरी 03, 2021
कठपुतली हो तुम अपने घर की,
ना प्यार मिला ना सम्मान
सज़ा मिली तुम्हे नफ़रत की।
मत भूल अपराध सहना भी अपराध से कम नहीं,
मत भूल अपराधी को अपराधी ही तूने बनाया है।
बन बैठी थी तू उसके आँगन की तुलसी,
औकात नहीं थी कि काँटे भी उगे उसके आँगन मैं।
नारी है तू, प्यार कर,
प्यार के बदले प्यार कर,
कर नफ़रत के बदले नफ़रत।
नारी है तू, अर्ध नार है तू।
ना बन अपने ही घर में क़ैदी,
ये झुँझलाहट, ये सहनशीलता
शुरुआत है तुम्हारी बर्बादी।
दिखा दे अपना हौसला,
की क्या कर सकती है किरण बेदी।
हुआ है अपराध
किया है अपराध
सह सह कर अपराध।
बनाया है भागीदार अपराधी को अपराध करने में।
हत्या हुई थी इंदिरा की, उसने देश चलाया।
हत्या हुई थी गांधी की, उसने देश बनाया।
नारी है तू, अर्धनार है तू।
फिर तू क्यूँ घर में डुबकी है।
टैगोर की गीतांजलि है तू,
बच्चन की मधुशाला।
क्यों बैठी है अपने ही घर में बैठ के दुशाला।
बन झाँसी की मणिकर्णिका,
कर दे संहार दहेजगारो का।
नारी है तू, अर्ध नार है तू,
भाग है आधा नार है तू।
फिर क्यों अपने ही भाग का अपराध सह रही है।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर