हम - कविता - कुन्दन पाटिल

आपकी मेरी इनकी उनकी।
न जाने क्या क्या बाते करते हम।।
सुख समृद्धी शांति अपनो की।
सहजता से पचा न पाते हम।।
दुःख दर्द में जब अपने होते।
अक्सर नज़रें चुराते हम।।
अपने कर्मो से अपना सुख चेन।
खोते रहते यहाँ अक्सर हम।।
स्वयं सुख को खोजते रहते।
अपनों के सुख से दुखी होते हम।। 
अहंकार द्विवेश भाव को पाले।
मान सम्मान को खोजते हम।।
सत्य निष्ठा सेवाभाव को त्याग।
सुख शांति को चाहत रखते हम।। 
सच्चे सुख शांति को तलाशते।
जीवनभर दुःख का श्रवण करते हम।।
अपना जीवन अपने हाथों।
मरूस्थली सा बनाते हम।।
अनमोल जीवन की अपनी कहानी।
व्यर्थ आडंबर में बिताते हम।।

कुन्दन पाटिल - देवास (मध्यप्रदेश)

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