आसमाँ भी धरा से मिला है।
बाग में फूल मानो खिला है।।
खुश्बु की तितलियाँ घूमती हैं,
भृंग के प्रेम का सिलसिला है।
बाजुओं में अगर शक्ति है तो,
आज पर्वत समूचा हिला है।
अब फ़िज़ा फागुनी हो गई है,
चल रहा रंग का क़ाफ़िला है।
साज जब झनझनाने लगे तो,
झूमती हाँ अडिग सी शिला है।
अविनाश ब्यौहार - जबलपुर (मध्य प्रदेश)