आख़िर सजन के पास जाना - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला

छुपा निज उर शूल को,
कितना कठिन  है मुस्कुराना।

पहन अभिनय का मुखौटा,
कठिन है अभिनय दिखाना।

आह! इक अंदर समाई,
इस दर्द को है कौन जाना।

अब चाह अपनी भूलकर,
है फ़र्ज़ का दीपक जलाना।

राहें अँधेरी चीर कर,
इस पार से उस पार जाना।

डाह किस्मत से करूँ क्यूँ,
आख़िर सजन के पास जाना।

अग्निपथ की ये परीक्षा,
जीतकर प्रिय संग पाना।

छुपा निज उर शूल को,
कितना कठिन है मुस्कुराना।

पहन अभिनय का मुखौटा,
कठिन है अभिनय दिखाना।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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