नामुराद - कविता - तेज देवांगन

तू बेअसर, या मै नामुराद हो गया।
तू भी न बदली, मै भी न बदला,
ना जाने फिर कोई क्यूँ तेरा साद हो गया।
इश्क़ वहीं था, दर्दे मोहब्बत,
ना जाने फिर कोई क्यूँ तेरा अल्फ़ाज़ हो गया।
ख़ता हुई ना इश्क़ दर्मियान,
हुई बस मेरी ग़ज़ल रूबाई,
ना जाने फिर मै क्यूँ तेरे दिल आज़ाद हो गया।
अश्क बहे आँखों मेरी,
दिल तेरा औरे जहां आबाद हो गया।
कर गई तू सितम, मोहब्बत पे मेरी,
ना जाने फिर मै क्यूँ बर्बाद हो गया।
तू खुश ग़ैर बाहों में,
ना जाने फिर क्यूँ मै दुनियाँ आज़ाद हो गया।
ना पिरोना अब मुझे संगमरमर की तरह,
मै अरबे जहां रियाद हो गया।

तेज देवांगन - महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

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