अभिषेक अजनबी - आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)
शक्ति, शक्ति पहचान - कविता - अभिषेक अजनबी
बुधवार, जनवरी 27, 2021
मौन साधना में रहती क्यूँ?
आज के दानव से डरती क्यूँ?
तुझमें शक्ति परम प्रबल है,
फिर भी तड़प तड़प मरती क्यूँ?
अत्याचार शिखर पर पहुँचा,
तेरा कुछ अधिकार नहीं?
मौन साधना अब तो देवी,
हमको है स्वीकार नहीं।
यमराज से लड़ने वाली।
रावण से ना डरने वाली।
पुरुष ग्रहों के बीच अकेली,
धरती बनकर अड़ने वाली।
जो तेरा दाव लगाते हैं।
वे धर्मराज कहलाते हैं।
तुम्हें क़ैद में रखने को,
सब धर्म योग्य बतलाते हैं।
क्या तुझको तेरे जीवन से,
होता तनिक भी प्यार नहीं?
मौन साधना अब तो देवी,
हमको है स्वीकार नहीं।
संविधान के अधिकारों पर,
अपना भी अधिकार रखो।
एक हाथ में ज्ञान की पोथी,
तो दूजे में तलवार रखो।
रूप छंद वैसे भी तुम हो,
मत ग़ज़लों का भार रखो।
श्रृंगार ना रखो बैग में,
हथ गोले दो चार रखो।
शक्ति क्षेत्र में काली जैसा,
है कोई किरदार नहीं!
मौन साधना अब तो देवी
हमको है स्वीकार नहीं।
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