ह्यूमर उर्फ़ हास्य - निबंध - अमृत गौड़ "शिवोहम्"

ह्यूमर; जी हाँ यही वह शब्द है जो सदा से प्रचलन में तो है, मगर जिसके बारे में अभी तक ज्यादा लिखा नहीं गया है। अंग्रेजी में इसे विट, लाफ्टर और अन्य रूप में मूड भी कह सकते हैं, वहीं हिंदी के विविध शब्दों से इसके अनंत विस्तार का पता लगाया जा सकता है जैसे हास्य, विनोद, परिहास, हाजिरजवाबी, मजाक और ठिठोली आदि… वहीं कुछ लोग इसे मसखरापन कहकर परिहास भी कर देते हैं। मसखरे को अक्सर हलके रूप में ही लिया जाता है।

यूँ तो समाज कागजी तौर पर लिंगभेद से ऊपर उठ गया है, उसी लिंगभेद की खिलाफत करने वाले  कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने लिंगभेदी शोध में  पाया है कि पुरुष लेखक महिला लेखकों की तुलना में अपशब्दों और वयस्क शब्दों का अधिक  इस्तेमाल करते हैं। यहाँ बताना उचित होगा कि अपनी लेखनी में ह्यूमर  का अधिक उपयोग करने वाले लेखक ‘ह्यूमरिस्ट’ कहलाते हैं; जिनमे उल्लेखनीय रूप से मार्क ट्वेन, रिंग लार्डनर,  बैनेट कर्फ़ जैसे अंग्रेजी लेखकों का नाम आता है।
वहीं भारत में इन हास्य व्यंगकारों  की श्रेणी में हरिशंकर परसाई, काका हाथरसी, श्रीलाल शुक्ल, शरद जोशी, तारक मेहता (जिनके नाम पर अभी एक अमर सीरियल चल रहा है) आदि विख्यात साहित्यकार आते हैं।

परसाई जी ने ठिठुरता लोकतंत्र में लिखा है- “स्वतंत्रता दिवस भी तो भरी बरसात में होता है, अंग्रेज बहुत चालाक हैं, भरी बरसात में स्वतंत्र करके चले गए; उस कपटी प्रेमी की तरह भागे जो प्रेमिका का छाता भी ले जाए; वह बेचारी भीगती बस स्टैंड जाती है तो उसे प्रेमी की नहीं; छाता चोर की याद सताती है, स्वतंत्रता दिवस भीगता है और गणतंत्र दिवस ठिठुरता  है।”

अरे भाई!  हम आम इंसानों में भी ह्यूमर कूट-कूट कर भरा है। वहीं इसके विभिन्न प्रकारों की बात की जाए तो प्रजाति  के आधार पर यह देसी और विदेशी दो प्रकारो में पाए जाते हैं; मगर अचरज ये है कि अंग्रेजी में झाड़े गए ह्यूमर को भारत में एलिट क्लब मे शामिल ह्यूमर माना जाता है वो तो  विदेशी ह्यूमर की खुशकिस्मती है कि उसे ‘अर्बन नक्सल’ वाला ह्यूमर नहीं कहा जाता, मगर देसी ह्यूमर इतना खुशकिस्मत नहीं, क्यूंकि इसे कभी-कभी गवार टाइप जो  बता दिया जाता है। वही अंग्रेज़ीदाँ लोग तो जानबूझकर इसके विदेशी स्टाइल का उपयोग करते हैं, शायद यह उन्हें अपनी शान के अनुरूप लगता है, मगर विदेशी टच वाला ह्यूमर हम भारतीयों को कम ही सुहाता है जब तक कि वो  चार्ल्स डिकेंस या विलियम शेक्सपियर के किसी संवाद का हिस्सा ना हो। कहा भी जाता है कि लड़कियों को ऐसे लड़के ही पसंद आते हैं जिनमें हास्य विनोद की प्रवृत्ति अधिक हो; शायद इसी कारण हम में से कुछ लोग मोबाइल पर पढ़े हुए जोक या कहीं से सुनी बात को कॉपी-पेस्ट कर बड़ी चतुराई से इस्तेमाल करते देखे जा सकते हैं। वहीं कुछ लोग ह्यूमर की सीमा को भी लाँघ देते हैं; जैसे चींटियाँ लक्ष्मण रेखा को पार करके बेहोश हो जाती है। वैसे ही यह दूसरों का उपहास करने के लिए दोयम दर्ज़े के ह्यूमर का इस्तेमाल करते हैं जिसे ‘ह्यूमर कम; ट्यूमर ज्यादा’ कहा जा सकता है। वही इसका एक अन्य प्रकार सीरियस  ह्यूमर भी है। गंभीर हास्य का यह प्रकार घरों में पाया जाने वाले सनकी फूफा टाइप लोगों के हिस्से में आता है, जो अक्सर उम्र दराज होने के कारण गंभीर होने का ढोंग करते हैं मगर पुरानी सालियों या शादी में आई नवयुवतियों के समक्ष हास्य-विनोद की नाकामयाब कोशिश करते देखे जा सकते हैं और पुरानी सालियों को उनके हास्य पर जबरन हँसना पड़ता है। यह कहा जा सकता है कि ये सालियाँ उन्हें धन्य महसूस करवाती हैं। वही अमजद खान द्वारा “कितने आदमी थे” के डायलॉग को किस तरह का ह्यूमर कहा जा सकता है; आप लोग ही विचार कीजिए।

स्वभाव के आधार पर पर इसे ‘जबरन’ और ‘सहज’ दो प्रकार से बांटा जा सकता है। किसी व्यक्ति द्वारा कभी-कभी बलपूर्वक हास्य विनोद उत्पन्न करने का स्पष्ट प्रयास इस श्रेणी में आता है परन्तु प्रायः ऐसा प्रयास आसपास मौजूद नारियों को आकर्षित करने के लिए किया जाता है। ऐसे जबरन हास्य को उन लड़कियों द्वारा  छिछोरापन कहकर खारिज कर दिया जाता है। वहीं भारत में क्षेत्रवाद हावी होने की बात कही जाती है तो भला ह्यूमर में क्षेत्रवाद क्यों ना हो, हरियाणा का ताऊ तो पैदा होते ही ह्यूमर की घुट्टी लेकर पैदा होता है। वहीं राजस्थानी ह्यूमर में रौबिलापन अधिक रहता है, जिसमें स्वयं की तथाकथित गरिमा बनाए रखी जाती है, शायद यह रजवाड़ों के रौबिलेपन का ‘ ग्रेगर जॉन मेण्डल इफ़ेक्ट ” है।

वहीं कुछ लड़कियों को ‘सॉफ्ट म्यूजिक’ की तरह ही ‘सॉफ्ट ह्यूमर’ भी पसंद है जहां लड़का गोविंदा की फिल्म की तरह हल्का हँसी मजाक करे; वही कुछ की पसंद ‘हार्ड ह्यूमर’ है, जो जॉनी लीवर की टिपिकल हास्य मूवी की तरह दिखाई दे पर बहुत ही कम लोग बचे हैं जो जॉनी वाकर या मेहमूद टाइप क्लासिक ह्यूमर को पहचान सके।

ह्यूमर का एक अन्य प्रकार बुद्धिजीवी ह्यूमर भी है जो बहुधा  ‘इंटेलेक्चुअल क्लब’ द्वारा इस्तेमाल किया जाता है लेकिन यह आधे से अधिक लोगों को समझ ही नहीं आता और उनके द्वारा कोई प्रतिक्रिया न दिए जाने के कारण तथाकथित इंटेलेक्चुअल खुद की बुद्धि पर मलाल करता हुआ रह जाता है। वही बिछड़े हुए मित्रों द्वारा आपस में मिलने पर सामान्य सी वार्ता में भी हर बात पर हँसी  ठिठोली की जाती है मानो ह्यूमर की गंगा ही बह रही हो।
इसी प्रकार जब सहज सरल सखियाँ विवाह पश्चात मिलती हैं तो उनकी वार्ता मौजूदा लोगों को भी आनंदित कर देता है। ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ये हमारे जीवन का ऐसा हिस्सा है जो भारी लम्हों को हल्का और सुखद बनाता है फिर भी यही सत्य है कि निश्छल हास्य ही सर्वश्रेष्ठ ह्यूमर है।

अमृत गौड़ "शिवोहम्" - जयपुर (राजस्थान)

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